Gorakhpur: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में मुट्ठीभर बुनकर आज भी ट्रेडिशनल हैंडक्राफ्ट टेक्सटाइल इंडस्ट्री को जिंदा रखे हुए हैं, बुनकर बताते है कि कभी अपने पारंपरिक हथकरघा उत्पादों के लिए मशहूर गोरखपुर अब मुश्किल दौर से गुजर रहा है।
बुनकरों का कहना है कि पावरलूम के आने से उनके प्रोडक्ट की मांग में भारी गिरावट आई है। पावरलूम पर बनने वाले प्रोडक्ट की तुलना में उनके हाथ से तैयार किए गए सामान को बनने में ज्यादा समय लगता है, बाजार में प्रोडक्ट की मांग कम होने से बुनकरों की आमदमी भी कम हुई है।
हैंडक्राफ्ट इंडस्ट्री में पीढ़ियों से काम करने वाले बुनकरों का कहना है कि उनके परिवार में अगली पीढ़ी के लोग रोजगार के दूसरे मौके तलाश रहे हैं। वहीं कुछ बुनकर बताते है कि वह आज भी इस काम को पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि इस कला को जिंदा रखने के लिए कर रहे हैं।
वहीं कुछ बुनकर बताते है कि वे आज भी इस काम को पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि इस कला को जिंदा रखने के लिए कर रहे हैं, बुनकरों का कहना है कि हैंडक्राफ्ट इंडस्ट्री में दशकों से काम करने के बावजूद उनकी आर्थिक हालत में सुधार नहीं हुआ है।
ऐसे में हैंडक्राफ्ट टेक्सटाइल इंडस्ट्री में काम करने वाले लोग सरकार से इस सेक्टर को फिर से खड़ा करने के लिए मदद की अपील कर रहे हैं। बुनकर मोहम्मद हकीम ने बताया कि “कद्र कम हो गई है इसकी। ये जो है पावरलूम सब आ गया है आधुनिक। ये कम तैयार भी होता है और वो वाला ज्यादा तैयार होता है आधुनिक वाला। इसकी वजह से इसकी कद्र कम हो गई। इसकी कास्ट ज्यादा पड़ती है। इसमें जो भी मजदूर काम करते हैं, आधुनिक ज्यादा उतरते हैं। तो वो माल ज्यादा तैयार होता है तो इसका जितना भी मजदूर काम करते हैं, माल रह जाता है, पूरा बिक नहीं पाता है। इसी वजह से धीरे-धीरे काम कम हो गया है जो भी परिवार इसमें लगे हैं वो हट रहे हैं इससे।”
इसके साथ ही कहा कि “अब नौजवान इसमें नहीं लगेगा, जैसे अब हम लोगों का भविष्य खराब होगा, लड़कों का नहीं खराब करेंगे। इस रोजगार में लगा कर। इसमें कोई फायदा नहीं है। इससे पेट कहा पलता है। बहुत जमाने से इसमें हमारे बाप दादा जमीन लिए, लड़के की शादी सब इससे ही होता था। लेकिन अब कुछ नहीं चलने वाला तो इसलिए लड़कों को दूसरा काम में लगा दिए हैं। 150 रुपये से ज्यादा नहीं कमाते। वे सुबह आएंगे और पांच बजे तक काम करेंगे तब हो पाएगा। तब हो पाएगा अपना। यही है अपना।