Etawah: उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के लखना कस्बे में बना देवी महाकाली का मंदिर हिंदू-मुस्लिम के बीच भाईचारे और सद्भाव की मिसाल है। मंदिर परिसर में सूफी संत की मजार है, यहां आने वाले श्रद्धालु दोनों धार्मिक जगहों पर सजदा करते हैं.
महाकाली को कई लोग अपनी कुलदेवी मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। मंदिर प्रबंधक के मुताबिक मंदिर की स्थापना 200 साल पहले राजा जसवंत राव जी ने की थी।
देवी महाकाली का ये मंदिर इटावा में काफी प्रसिद्ध है, खास बात यह है कि इसकी देखरेख दलित समुदाय के लोग करते हैं। ये न सिर्फ हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक है, बल्कि जातीय भेदभाव से परे सद्भाव को भी दिखाता है।
श्रद्धालुओ का कहना है कि “मजार के पीछे की कहानी के बारे में तो नहीं मालूम, लेकिन ये एक तरह से जो है आपसी भाईचारे की बहुत बड़ी मिसाल है कि यहां पर लोग आते हैं, मां के दर्शन करते हैं और मजार पर भी जाते हैं और कौड़ी चढ़ाते हैं।
इसके साथ ही कहा कि “वैसे तो हम लोग बहुत पहले ओडिशा शिफ्ट कर गए थे। लेकिन हमारी मान्यता ये है कि ये हमारी कुलदेवी हैं। जैसा कि हम लोग राजस्थान से हैं, तो ये हमारी कुल देवी मानी गई हैं और हमारी इस मंदिर से इतनी मान्यता जुड़ी हुई है कि हम लोग जो मांगते हैं, यहां आकर मिल जाता है।”
वहीं लखना राजघराने के वंशज और मंदिर प्रबंधक राजा रविशंकर शुक्ला ने बताया कि “इसकी स्थापना राजा जसवंत राव जी ने की थी और वो कंधेशी में जाते थे, गंगा पार करके पूजा करने देवी जी की। एक बार बाढ़ आ गई, तो वो जा नहीं पाए। उन्होंने खाना-पीना सब छोड़ दिया, तो मां ने उनको दर्शन दिए और उसके बाद लोगों ने खबर की कि ऐसे-ऐसे पीपल के पेड़ में आग लग गई है। उसमें मूर्तियां निकली हैं, तो राजा साहब वहां दौड़ कर पहुंचे, वहां देवी की मूर्तियां थी। उन्होंने वहां मंदिर की स्थापना की और मंदिर की स्थापना करने के बाद उन्होंने वहां मजार की भी स्थापना की।”