New Sports Policy: नई घोषित राष्ट्रीय खेल नीति के तहत अब विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के खिलाड़ियों को देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए बढ़ावा दिया जाएगा। यह फैसला सरकार के पहले के उस रुख से अलग है, जिसमें सिर्फ भारतीय पासपोर्ट धारकों को ही देश का प्रतिनिधित्व करने की इजाजत थी। इस नीति को ‘खेलो भारत नीति’ भी कहा जाता है।
2008 में ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड धारकों के देश का प्रतिनिधित्व करने पर प्रतिबंध ने फुटबॉल और टेनिस जैसे खेलों में भारत के विकास को प्रभावित किया है। हालांकि 20 पन्नों की ‘खेलो भारत नीति’ दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि भारत खेलों के जरिए शांति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की गतिविधियों को बढ़ावा देगा, ताकि “खेल, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और सहयोग का एक प्रभावशाली माध्यम बन सके।”
नीति में ये भी कहा गया है कि जहां मुमकिन हो, वहां विदेशों में रहने वाले प्रतिभाशाली और भारतीय मूल के खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए खेलने का मौका दिया जा सकता है। ये सभी प्रयास मिलकर खेल को सांस्कृतिक, कूटनीति और राष्ट्र निर्माण का एक प्रभावी माध्यम बना सकते हैं, जिससे वैश्विक भारतीय पहचान और मजबूत होगी।”
वर्तमान में केवल भारतीय पासपोर्ट धारकों को ही देश का प्रतिनिधित्व करने की इजाजत है, हालांकि मंत्रालय इस प्रतिबंध को हटाने पर विचार कर रहा है, ताकि भारत की खेल प्रणाली को और भी सशक्त बनाया जा सके। नई खेल नीति के अनुसार, भारत अंतरराष्ट्रीय खेल विनिमय कार्यक्रमों को बढ़ावा देगा, जिससे ज्ञान साझा करने, क्षमता निर्माण और साझा विकास प्रयासों को प्रोत्साहन मिलेगा।
खेल, भारत और विदेशों में रहने वाले भारतीयों और प्रवासी भारतीयों के बीच मजबूत रिश्ता बना सकते हैं। इससे भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक जुड़ाव बढ़ेगा। इस रिश्ते को और मजबूत करने के लिए खासतौर पर प्रवासी भारतीयों के लिए खेल प्रतियोगिताएं और लीग आयोजित की जा सकती हैं।
ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन यानी एआईएफएफ प्रवासी भारतीय नागरिकों को भारत की ओर से खेलने की इजाजत देने को लेकर खासतौर पर उत्साहित है, हालांकि अभी ऐसा कोई बड़ा खिलाड़ी नहीं है, जो प्रतिबंध हटने के बाद भारत की टीम में शामिल हो सके।
टेनिस में दिग्गज खिलाड़ी विजय अमृतराज के बेटे प्रकाश अमृतराज उन कई प्रमुख अमेरिकी पासपोर्ट धारकों में शामिल थे, जिन्हें ओसीआई कार्ड धारकों पर लगे प्रतिबंध का असर झेलना पड़ा। उन्होंने 2003 से 2008 के बीच भारत की ओर से 10 डेविस कप मुकाबलों में हिस्सा लिया था, लेकिन बाद में लागू हुए प्रतिबंधों के कारण उनके जैसे खिलाड़ी टीम का हिस्सा नहीं बन सके।