Politics: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि राजनैतिक दलों को अपने सांसदों के लिए आचार संहिता बनानी चाहिए, ताकि विधायी निकायों की गरिमा बनी रहे। बिरला ने यहां आयोजित 85वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि इस दो दिवसीय विचार-विमर्श के बाद पीठासीन अधिकारियों ने विधायी निकायों को बहस और चर्चा का केंद्र बिंदु बनाने का संकल्प लिया है।
उन्होंने कहा, ‘‘सभी राजनैतिक दलों को विधायी निकायों की गरिमा बनाए रखने में सहयोग करना चाहिए। ये तभी संभव होगा जब राजनैतिक दलों के पास अपने सांसदों के लिए आचार संहिता होगी।’’ बिरला की टिप्पणी कई विधायी निकायों में बार-बार होने वाले व्यवधानों की पृष्ठभूमि में आई है, लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि पीठासीन अधिकारियों ने तकनीकों का उपयोग करके विधायी निकायों के कामकाज में अधिक दक्षता लाने का भी संकल्प लिया है।
बिरला ने कहा कि संसद जल्द ही 1947 से आज तक की संसदीय चर्चाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में उपलब्ध कराएगी। उन्होंने कहा कि सभी विधानसभाओं को 1947 से आज तक की चर्चाओं को हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने इसके लिए संसदीय सचिवालय से तकनीकी सहायता प्रदान करने की पेशकश की। सम्मेलन के समापन सत्र में बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा, बिहार विधानसभा के अध्यक्ष नंद किशोर यादव, बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह और कई लोग शामिल हुए।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि “निश्चित रूप से सदनों की गरिमा तभी रहेगी, जब सदनों के अंदर चुने जनप्रतिनिधियों का आचरण, व्यवहार गरिमापूर्ण होगा। इसलिए आपने सही कहा कि जब तक सदनों के अंदर हम जनप्रतिनिधियों के आचरण, उनके व्यवहार के लिए आचार संहिता नहीं बनाएंगे और ये आचार संहिता सभी राजनैतिक दलों को बनाना चाहिये। अपने-अपने दल के अंदर हम किस तरीके से…, क्योंकि समय-समय पर सरकारें परिवर्तन होती रहती हैं, इसलिए कोई न कोई दल कभी न कभी सत्ता में रहा है। इसलिए सभी दलों को ये अपेक्षा करनी चाहिए कि सदन की गरिमा बनाना सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है और उसकी सार्थक चर्चा, संवाद भी सबकी जिम्मेदारी है।
इसलिए नियोजित गतिरोध समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। राजनीति दल अपने-अपने जनप्रतिनिधियों में आचार संहिता बनाएं कि हमें सदन के अंदर इस आचार संहिता का पालन करना है। हमारा व्यवहार, हमारा आचरण उच्च कोटि का हो, हम किस तरीके से हमारी संवाद, चर्चा को और श्रेष्ठ कर सकते हैं, इसके लिए लोकसभा और राज्य के विधान मंडल जो समय-समय पर कोशिश करती रहती है कि जनप्रतिनिधियों की क्षमता बढ़े और उसके लिए जो भी आवश्यक संसाधन हों, उन संसाधनों को उपलब्ध कराते हैं।”