Emergency: आपातकाल के 50 साल, जेएनयू के छात्रों ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अपनाया था नायाब तरीका

Emergency:  इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के विद्यार्थियों ने प्रतिरोध का नायाब तरीका अपनाते हुए गिरफ्तारी से बचने के लिए एक गुप्त योजना बनाई जिसके तहत वे चुपचाप खुद को छात्रावास के कमरों में बंद कर दरवाजे पर बाहर से ताला लगवा दिया करते थे।

यह तरीका उस समय अहम साबित हुआ जब पुलिस ने व्यापक कार्रवाई करते हुए पूरे परिसर को अर्धसैनिक बलों के साथ घेर लिया था। आपातकाल के दौर में जेएनयू में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के सचिव व इतिहासकार सोहेल हाशमी ने ‘पीटीआई-वीडियो’ को दिये साक्षात्कार में आठ जुलाई, 1975 की नाटकीय रात को याद किया।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें पता था कि छापेमारी होने वाली है। कुछ छात्रों ने, जो वास्तव में खुफिया एजेंट थे, हमें इसकी सूचना दी थी। ये (छापेमारी) छह से आठ जुलाई के बीच कभी भी हो सकती थी।’’

हाशमी ने बताया कि छापे से पहले, छात्र नेताओं ने एक आंतरिक नेटवर्क तैयार कर लिया था। उन्होंने बताया, ‘‘हम कमरे बदलते रहते थे। जिन लोगों को गिरफ्तार किए जाने की आशंका थी, उनके कमरे को बाहर से ताला लगा दिया जाता था। जो व्यक्ति उन्हें बंद करता था, वो दूसरे कमरे में चला जाता था और उसे भी (बाहर से) बंद कर ताला लगा दिया जाता था। चाबियां चुपचाप हममें से कुछ लोगों में बांट दी जाती थीं।’’

उन्होंने बताया, ‘‘केवल ताला लगाने वाले को पता होता था कि उक्त व्यक्ति वास्तव में कहा है।’’

हाशमी के मुताबिक छापेमारी की कार्रवाई आधी रात को शुरू हुई और उस समय जेएनयू को किले में तब्दील दिया गया था। उन्होंने बताया, ‘‘वहां पुलिस और अर्धसैनिक बलों के करीब 30 से 40 ट्रक थे। कुछ लोग बताते हैं कि 500 अधिकारी थे, जबकि बाकी कहते हैं कि 1,500 तक थे। तीनों छात्रावासों को बंदूकधारी सुरक्षा बलों ने घेर रखा था। इसके अलावा, पूरे परिसर को एक और सुरक्षा घेरे में कैद किया गया था।’’

इतिहासकार ने बताया कि छात्रों को भीतर रख कमरे को बाहर से ताला लगाने की योजना काफी कारगर साबित हुई। उन्होंने कहा, ‘‘वे जिन लोगों को गिरफ्तार करने आए थे, उनमें से ज़्यादातर को वे ढूंढ नहीं पाए।” हालांकि हिरासत में लिये गये कुछ लोगों में वे भी शामिल थे।

उन्होंने कहा, ”जिस दोस्त को मुझे कमरे में बंद कर ताला लगाना था, वो उस रात परिसर नहीं पहुंच सका था। मुझे बैगर बाहर से ताला लगाए कमरे में सोना पड़ा। जब उन्होंने दस्तक दी, तो मेरे पास दरवाजा खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।’’ हाशमी को लगभग एक दर्जन लोगों के साथ भारत रक्षा नियम (डीआईआर), 1969 के तहत गिरफ्तार किया गया था, जो बिना मुकदमे के एहतियातन हिरासत में रखने की अनुमति देता है।

उन्होंने बताया,‘‘वे हमें तिहाड़ जेल ले गए। कुछ दिनों बाद हमें अदालत में पेश किया गया।’’ हाशमी ने बताया कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों के गवाही देने के बाद हिरासत में लिए गए लोगों को जमानत दे दी गई। मेरे शोध मार्गदर्शक प्रोफेसर मुनीश रजा और कुलसचिव एनवीके मूर्ति हमारे साथ खड़े रहे। उन्होंने मजिस्ट्रेट को बताया कि कोई साजिश या सार्वजनिक बैठक नहीं हुई थी।’’

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा की गई और ये 21 मार्च, 1977 तक प्रभावी रहा। इस दौरान व्यापक प्रेस सेंसरशिप, बिना सुनवाई के गिरफ्तारियां तथा शिक्षा जगत, राजनीति और नागरिक समाज में असहमति को दबा दिया गया।

हाशमी ने कहा,‘‘जेएनयू देश का पहला संस्थान था जिसे इस स्तर की कार्रवाई का सामना करना पड़ा। हम छात्र थे, लेकिन वे हमारे साथ विद्रोहियों जैसा व्यवहार कर रहे थे।’’

इतिहासकार सोहेल हाशमी ने कहा कि “जब आपातकाल घोषित किया गया, मैं जेएनयू में पढ़ रहा था और मैंने 1974 में अपना एमए पूरा कर लिया था और मैं अपनी एमफिल और पीएचडी कर रहा था। मैं उस समय जेएनयू शाखा के छात्र संघ का सचिव भी था। आपातकाल के ठीक बाद, हर कोई हैरान था। किसी ने भी इस तरह की घटना की उम्मीद नहीं की थी। और शुरुआती चरण में कांग्रेस के राजनीतिक विरोधियों की गिरफ़्तारी शुरू हो गई और इसी तरह आगे भी। उस समय और आपातकाल की घोषणा से कुछ समय पहले भी, लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला चल रहा था।

विशेष रूप से ये बंगाल में केंद्रित था और लगातार, और उन्होंने जो तकनीक विकसित की थी, वो ये थी कि किसी भी राजनीतिक विरोधी को, वे नक्सली घोषित करते थे, उन्हें गिरफ़्तार करते थे और फिर वे उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाते थे और उन्हें छोड़ देते थे और कहते थे, भाग जाओ। और जब वे भाग रहे होते थे, तो उन्हें पीठ में गोली मार दी जाती थी। इस तरह बड़ी संख्या में राजनीतिक कार्यकर्ता, विशेष रूप से सीपीआईएम के और सीटू और किसान सभा और एसएफआई के ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता मारे गए।”

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *