Union Budget: भदोही के कालीन कारोबारियों को केंद्र सरकार से बहुत उम्मीदें

Union Budget: वित्तीय वर्ष 2025-26 का केंद्रीय बजट पेश होने से पहले देश की उम्मीदें केंद्र सरकार पर टिकी हैं। उत्तर प्रदेश का भदोही कालीन नगरी के नाम से मशहूर है, लेकिन इन दिनों जिले के बुनकर और व्यापारी संघर्ष का सामना कर रहे अपने उद्योग को और मजबूत करने के लिए सरकार से उम्मीद लगा रहे हैं।

बीते कुछ सालों में भदोही के कालीनों ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मजबूत पकड़ बनाई है, कालीन उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि कुछ वजहों से विकास नहीं हो पा रहा है। कारोबारियों को उम्मीद है कि बजट में केंद्र सरकार इन वजहों को दूर करने की पूरी कोशिश करेगी। कई कारोबारियों का कहना है कि अब भदोही में कालीन बनाने वाले अच्छे कारीगरों की बहुत कमी हो गई है। कालीन कारीगरों का कहना है कि युवा पीढ़ी को कालीन बनाने का काम सिखाने वाले अच्छे संस्थान भी बहुत कम रह गए हैं।

भदोही के लोग और व्यापारी युवाओं को प्रेरित करने के लिए कालीन बुनाई केंद्र स्थापित करने की अपील कर रहे हैं, कुछ बुनकर ऑफ-सीजन के दौरन वैकल्पिक रोजगार के मौके देने की अपील कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि स्वास्थ्य सेवओं में सुधार और सरकारी स्कूलों में सुविधाओं को भी अपग्रेड करने की जरूरत है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को बजट पेश करने वाली हैं। भदोही के कालीन उद्योग से जुड़े लोगों को उम्मीद है बजट में सरकार उनका पूरा ख्याल रखेगी।

कालीन निर्यातक और सीईपीसी सदस्य के असलम महबूबने बताया कि “हमको काफी उम्मीदें हैं और खासतौर से 43बीएच जो एमएसएमयू पर लगा है वो एक हम लोगों के लिए बहुत नुकसान का सौदा हो रहा है, उससे काफी समस्याएं आ रही हैं, वो है। बुनकरों के लिए कोई योजना की उम्मीद कर रहे हैं हम लोग। इस तरह की जो और भी चीजें हैं, उस पर सरकार जरूर सोच रही होगी।”

“नया बजट आने वाला है तो उसमें काफी उम्मीदे हैं। अभी सरकार ने पीछे भी काफी अच्छी पॉलिसी बनाए हैं, फॉरेन ट्रेड बिजनेस के लिए। तो इस बार भी उम्मीद है कि निर्यातकों के लिए कुछ अच्छा पैकेज जो है सरकार लेकर आएगी कि जिससे कि हिंदुस्तान का निर्यात बढ़ सके, कालीन का निर्यात बढ़ सके।”

कालीन निर्माता और निर्यातक मुशीर इकबाल ने कहा कि “हम अपने सरकार से यही उम्मीद करते हैं कि कालीन में बिनाई रीढ़ है और कालीन की बिनाई करने वालों की कमी होती जा रही है, वजह है कि यहां पर नए जो है बुनाई सीखने वाला कोई नहीं है और बुनाई सिखाने का कोई भी इंतजाम भी नहीं है। पिछले पहले जो है कालीन सेंटर बनते थे, उसमें लोग जाकर जो है बुनाई सीखते थे और उसके बाद फिर कालीन की बुनाई करते थे। मैं सरकार से यही मांग करता हूं कि जिस तरह से पहले बुनाई सेंटर बनते थे, आज भी बनें।”

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