Turkey: व्यापारियों और उद्योग विशेषज्ञों ने तुर्की और अजरबैजान के साथ वाणिज्यिक लेन-देन समाप्त करने का आह्वान किया है, क्योंकि दोनों देशों ने ऑपरेशन सिंदूर के वक्त पाकिस्तान को समर्थन दिया है।
दिल्ली मार्बल डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) के उपाध्यक्ष परवीन गोयल ने कहा कि “पहले इटली से मार्बल आयात किया जाता था। अब भी (तुर्की से) मार्बल को ‘इटैलियन मार्बल’ के रूप में बेचा जा रहा है। लेकिन जिस तरह से तुर्की व्यवहार कर रहा है (पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है) उससे बहिष्कार की मांग उठ रही है। इटली, स्पेन और कई यूरोपीय देशों में बहुत सारा मार्बल उपलब्ध है। हम उनके साथ व्यापार करेंगे और तुर्की कंपनियों के साथ हमारे सभी विशेषाधिकार समाप्त कर देंगे। हम अब यूरोप पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हम सभी बड़ी निर्माण कंपनियों को इटली के मार्बल की सिफारिश करेंगे।”
पिछले कुछ वर्षों में तुर्की और अजरबैजान भारतीय पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए थे और अब इस क्षेत्र से जुड़े लोग लोगों से इन देशों की यात्रा न करने के लिए कह रहे हैं। एविएशन और टूरिज्म पर विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष शुभाष गोयल ने कहा कि पिछले साल 3.33 लाख भारतीय तुर्की गए थे और 2.25 लाख अजरबैजान गए थे।
गोयल ने कहा सभी ने तुर्की और अजरबैजान का बहिष्कार किया है। इसका असर ये हुआ है कि करीब 60 फीसदी यात्राएं रद्द हो चुकी हैं और आगे भी रद्द होने की उम्मीद है।” तुर्की से कच्चा माल आयात करने वाला आभूषण उद्योग भी पश्चिम एशियाई देश का बहिष्कार करने वालों में शामिल हो गया है।
अध्यक्ष दिल्ली मार्बल डीलर्स एसोसिएशन और उपाध्यक्ष सीएआईटी परवीन गोयल ने बताया कि “पहले इटली से मार्बल आता था, आज भी ये मार्बल जितना इंपोर्टेड बिक रहा है इटालियन मार्बल के नाम से बिक रहा है। टर्की के पत्थरों को ये हमारे भारतीयों की ही देन है कि उनको लाया और आर्किटेक्ट को बताया और उसको बेचने के लिए प्रेरित किया। अब जिस तरीके की गतिविधियां हो रही हैं टर्की की अब हम लोग उसका बहिष्कार कर रहे हैं।”
विमानन और पर्यटन पर विशेषज्ञ समिति अध्यक्ष शुभाश गोयल ने कहा कि “पिछले साल 3.33 लाख इंडियन टर्की गए और 2.25 लाख अजरबैजान गए। और उन्होंने करोड़ो रुपया फॉरेन एक्सचेंज में वहां खर्चा।”
ऑल बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन ने अध्यक्ष योगेश प्रधान बताया कि “टर्की से हमारे डायमंड की गोल्ड की ज्वेलरी आते हैं। मेक इन इंडिया के तहत काफी हद तक ज्वेलरी इंडिया में बनने लगी है। लेकिन फिर भी जो भी ज्वेलरी और जो भी सामान वहां से आता है उसके लिए हमारे यहां पर रोष है।”