Rajouri: जम्मू-कश्मीर के राजौरी और पुंछ जिलों में रहने वाले लोग पहाड़ियों पर घास काटने के समय ढोल की थाप के साथ डांस करने की अनूठी परंपरा को निभाते हैं।
गांववालों के मुताबिक यह परंपरा न केवल काम के प्रति उत्साह भरती है, बल्कि कम्युनिटी बॉन्डिंग की भी प्रतीक है, क्योंकि इस कार्यक्रम में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग हिस्सा लेते हैं। यहां के लोगों के लिए ‘लेट्री’ सालाना जलसे की तरह है, जिसमें सितंबर और अक्टूबर के महीनों के दौरान घास काटकर पशुओं के चारे के रूप में इकट्ठा किया जाता है।
राजौरी और पुंछ के लोग सदियों पुरानी इस परंपरा को त्योहार की तरह मनाते हैं और चूंकि इसमें शारीरिक मेहनत भी होती है, इसलिए इसे ‘श्रम महोत्सव’ भी कहा जाता है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि “यह जो घास काट रहे हैं ये जो लेट्री लगी हुई है, यह हिंदू-मुसलमान मिक्स इसको करते हैं। मतलब जश्न का दिन होता है ये जो हिंदू-मुसलमान सभी मनाते हैं। घास अपनी काट-काट कर लोगों ने भैंसे रखी हुईं हैं। दूध का जो सिस्टम है ये गांव के लोग इसी पर डिपेंड करते हैं, तो मैं यहीं बोलना चाहता हूं कि आपस में भाईचारा रखें।”
“हम इस दिन को बहुत खुशी मनाते हैं और जश्न के साथ काम करते हैं। हम जो ये अपने पशु रखे हुए हैं भैसें-गाय वगैराह दूसरा-तीसरा हम उनके लिए घास काटते हैं और खुशी के साथ काटते हैं और रही बात ये मनकोट की । ये जितना भी मनकोट है कम से कम मैं कम से कम 15-14 ‘लेट्रिस’ लगवा चुका हूं और चार-पांच साल से मैं ऐसी ही लेट्री लगवाता हूं और अपने भाईयों-यारों की भी घास कटवाता हूं।”