Pollution: महानगरों में बढ़ता वायु प्रदूषण, शरीर और दिमाग के लिए नुकसानदेह

Pollution: महानगरों में वायु प्रदूषण बढ़ना शुरू हो गया है, ये न सिर्फ फेफड़ों और दिल को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि दिमाग पर भी बुरा असर डालता है।

कई अध्ययनों ने लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से अवसाद, चिंता और सोचने-समझने की ताकत कम होने की बात की है। प्रदूषित हवा दिमाग के रसायन का संतुलन बिगाड़ देती है। इससे मानसिक सेहत को नुकसान पहुंचता है। गर्भवती महिलाएं प्रदूषण के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील होती हैं। इससे गर्भ में बच्चों का विकास रुक सकता है।

गर्भवती महिलाओं के अलावा जिन लोगों पर प्रदूषण का जोखिम ज्यादा होता है, वे हैं बच्चे, बुजुर्ग और पहले से तनावग्रस्त लोग। पर्यावरण के जानकार चेतावनी देते हैं कि मानसिक सेहत और प्रदूषण के बीच रिश्तों को अक्सर कम करके आंका जाता है। उनका कहना है कि खराब वायु गुणवत्ता से उत्पादकता में कमी, अनिद्रा और भावनात्मक सेहत में गिरावट का खतरा होता है। वायु प्रदूषण से निपटने के लिए बेहतर नीतियां और जनभागीदारी – दोनों जरूरी हैं। इसके लिए वे स्वच्छ परिवहन, कम औद्योगिक उत्सर्जन और हरित पहल की पैरोकारी करते हैं, जो न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

मनोचिकित्सक डॉ. लोकेश शेखावत ने बताया कि “वायु प्रदूषण एक महत्वपूर्ण कारक है। ये जो है, ये क्या करते हैं, ये हमारे बॉडी में एक स्ट्रेस होता है, जिसको हम कहते हैं ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस में ऐसे वेस्ट प्रोडक्ट्स बनते हैं, जो बॉडी से निकलते हैं। उसका बहुत ज्यादा स्टोर करते हैं। बहुत ज्यादा ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बनाते हैं। ये कुछ इन्फ्लेमेट्री मार्कर्स हैं, क्योंकि बॉडी इनको इनफेक्ट करती है, रिएक्ट करती है।

जब रिएक्ट करती है तो इन्फ्लेमेट्री मार्कर्स रिलीज करती है। ये इन्फ्लेमेट्री मार्कर्स और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस जो है, ये हमारे बॉडी के अंदर चलता रहता है और वो दिमाग तक भी पहुंच जाता है। इससे हमारी बॉडी का कोई ऑर्गन नहीं है जो अफेक्ट नहीं होता। मस्तिष्क बहुत नाजुक होता है, फिर भी लोग इस पर ध्यान नहीं देते। दिमाग के ऊपर उतना ध्यान नहीं देते हैं। बाकी फेफड़ों की बात करते हैं। इन फैक्ट लीवर में भी फैटी लीवर रिपोर्टेड है, लेकिन मस्तिष्क पर इसका प्रभाव काफी गंभीर है।”

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