Monsoon: गोवा की राजधानी पणजी से सटे गांवों में रहने वाले छोटे मछुआरों का इंतजार अब खत्म हो गया है, वह समंदर में अपनी छोटी-छोटी नावों और जाल लेकर मछली पकड़ने के लिए निकल पड़े हैं।
दरअसल 1 जून से 31 जुलाई के बीच समंदर में बड़ी मशीनों और नावों से मछलियों को पकड़ने पर रोक है, क्योंकि ये मौसम मछलियों के प्रजनन का होता है। जिससे गोवा में पारंपरिक मछुआरों के जरिए पकड़ी गई मछलियों की मांग बढ़ गयी है और मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार मानसून के दौरान, मशीन से मछली पकड़ने पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू कर रही है।
पणजी के नौशी और कैकरा गांव मछुआरों की बस्तियां हैं। यहां मछली पकड़ने की पारंपरिक शैली को बरकरार रखा गया है। करीब 40 घरों वाले इस गांव के मछुआरे सुबह साढ़े चार बजे से अपनी डोंगियों के साथ मछली पकड़ने के लिए समुद्र की ओर निकलते हैं और सात बजे तक मछलियां पकड़कर बाजार तक पहुंचाते हैं, जहां उन्हें अच्छी कीमत मिलती है। वहीं, मछली पकड़ने के पारंपरिक तरीकों को बढ़ावा देने के लिए, गोवा सरकार मछुआरों को कई तरह की सब्सिडी भी देती है।
विश्वनाथ परेरा, पारंपरिक तरीके से मछलियां पकड़ते हैं और जून से अगस्त का महीना उनके लिए आर्थिक रूप से काफी फायदेमंद साबित होता है। इस दौरान, समुंद्र के कुछ अंदर तक जाकर मछलियां पकड़ने में इन्हें काफी आसानी होती है। परंपरागत रूप से, इन गांवों की महिलाएं लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित पणजी बाजार में मछलियां बेचती हैं। ये परंपरा इन गांवों में कई पीढ़ियों से चली आ रही है।
मत्स्य पालन मंत्री नीलकंठ हालर्नकर ने बताया कि “प्रजनन के उद्देश्य से हम प्रतिबंध लगाते हैं। ये प्राकृतिक है और इसे टिकाऊ होना चाहिए। अगर हम इन दो महीनों के दौरान मछली पकड़ने की अनुमति देते हैं, तो ये टिकाऊ मछली पकड़ना नहीं होगा क्योंकि ये प्राकृतिक प्रक्रिया को बाधित करता है।”
मछुआरा संजय परेरा ने कहा कि गोवा अगर मछली समंदर में जाने के लिए मिला तो एक 10 किलो मछली मिले तो तीन चार हजार ऐसा मिलता है, हमको इसी टाइम ज्यादा मिलता है पैसा कमाने के लिए वहीं चांस ज्यादा रहता है दो महीना बाद में सब बोट जाता है तो इतना रेट नहीं मिलता है मार्केट में कम रेट मिलता है। अभी सरकार ने पांच किलोमीटर के आगे नहीं जाने को मिलता है पांच किलोमीटर के अंदर ही मछली मारने को मिलता है।”