Misleading ads: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायतों से निपटने के लिए शिकायत निवारण तंत्र बनाने के लिए दो महीने की समय सीमा तय की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे समाज को बहुत नुकसान हो रहा है।
भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाने के लिए कई निर्देश जारी करते हुए जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि इससे समाज को और भी बहुत नुकसान हो सकता है और इसे रोकना और अज्ञानी जनता को बचाना जरूरी है।
कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारों को ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954 के तहत प्रतिबंधित आपत्तिजनक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए जनता के लिए सिस्टम तैयार करना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि 1954 का अधिनियम 70 साल से भी ज्यादा पुराना है और इसका सही अर्थों में क्रियान्वयन नहीं हुआ है। शीर्ष अदालत ने राज्यों को 1954 के अधिनियम के प्रावधानों के क्रियान्वयन के बारे में पुलिस तंत्र को संवेदनशील बनाने का निर्देश दिया। केंद्र को तीन महीने के भीतर भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई के प्रदर्शन के लिए डैशबोर्ड बनाने का निर्देश दिया गया।
यह मुद्दा तब उठा जब शीर्ष अदालत 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पतंजलि और योग गुरु रामदेव ने कोविड टीकाकरण अभियान और आधुनिक चिकित्सा पद्धति के खिलाफ बदनाम करने का अभियान चलाने का आरोप लगाया गया था।