Labor day: मजदूर या श्रमिक वह व्यक्ति होता है जो अपनी शारीरिक या मानसिक मेहनत से कोई भी काम करता है और बदले में मजदूरी या वेतन प्राप्त करता है। श्रमिक किसी भी क्षेत्र में कार्य कर सकता है, जैसे खेतों में काम करने वाला किसान हो, बिल्डिंग बनाने वाला मजदूर हो, फैक्टरी में मशीन चलाने वाला कर्मचारी हो या ऑफिस में काम करने वाला व्यक्ति हो, सभी श्रमिक कहलाते हैं। एक समय था जब श्रमिकों से बहुत ज्यादा काम करवाया जाता था, उन्हें रोज 16-16 घंटे तक काम करना पड़ता था, लेकिन बदले में उन्हें बहुत कम मेहनताना मिलता था। न उनके पास कोई अधिकार थे, न ही कोई सुरक्षा।
ऐसे में उनकी हालत को सुधारने के लिए और उन्हें उनके हक दिलाने के लिए दुनिया भर में आवाज उठी और फिर मजदूरों के सम्मान और अधिकारों को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि देश और समाज के विकास में मजदूरों का सबसे बड़ा योगदान होता है। मजदूर दिवस का मकसद यह है कि हम श्रमिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करें और उनके द्वारा किए गए परिश्रम का आदर करें। इस दिन हमें सभी मेहनतकश लोगों को सलाम करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि हर छोटा-बड़ा कार्य करने वाला व्यक्ति समाज की रीढ़ होता है। इसलिए इस दिन अपने आस-पास काम करने वाले श्रमिकों को शुभकामनाएं देकर उनका सम्मान करें और खुद को भी गर्व महसूस कराएं।
मजदूर दिवस का इतिहास-
मजदूर दिवस का इतिहास श्रमिकों के अधिकारों और उनके संघर्ष की लंबी और कठिन यात्रा को दिखाता है, जिसकी शुरुआत 19वीं सदी के अमेरिका से हुई। एक समय था जब मजदूरों से दिनभर बहुत ज्यादा काम कराया जाता था, लेकिन उन्हें न तो ठीक से पैसा मिलता था और न ही कोई अधिकार दिए जाते थे। वे रोज 12 से 16 घंटे तक काम करते थे और उनके लिए कोई नियम-कानून नहीं थे। तब मजदूरों ने अपने हक के लिए आवाज उठाई और अमेरिका के शिकागो शहर में 1 मई 1886 को हजारों मजदूरों ने हड़ताल की। उनकी मांग थी कि उन्हें दिन में सिर्फ 8 घंटे ही काम करना पड़े और बाकी समय आराम या परिवार के साथ बिता सकें। ये आंदोलन काफी बड़ा हो गया और 4 मई को शिकागो के हेमार्केट चौक में प्रदर्शन के दौरान एक बम धमाका हो गया, जिससे अफरा-तफरी मच गई और पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी। इस घटना में कई मजदूर मारे गए और कुछ नेताओं को फांसी दी गई।
इन शहीद मजदूरों की याद में 1 मई को मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत हुई। 1889 में पेरिस में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में 1 मई को मजदूरों के नाम समर्पित करने का फैसला लिया गया। इसके बाद कई देशों ने इस दिन को मान्यता दी और मजदूर दिवस मनाने लगे। भारत में मजदूर दिवस पहली बार 1923 में मद्रास (अब चेन्नई) में मनाया गया था, इसकी शुरुआत कॉमरेड सिंगरवेलू चेट्टियार ने की थी। तब से लेकर आज तक 1 मई को मजदूरों के सम्मान और उनके अधिकारों की याद में मजदूर दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि मेहनत करने वाले हर इंसान की इज्जत करनी चाहिए और उन्हें उनका हक मिलना चाहिए।
मजदूर दिवस का महत्व-
मजदूर दिवस हर साल 1 मई को मनाया जाता है और यह दिन मेहनतकश लोगों के सम्मान में समर्पित होता है। इस दिन को मनाने का मुख्य कारण मजदूरों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और उनके योगदान को पहचान देना है। मजदूर किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी होते हैं। वे फैक्ट्रियों में काम करते हैं, इमारतें बनाते हैं, खेतों में मेहनत करते हैं, और कई तरह के कार्य करके समाज के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं।
पहले के समय में मजदूरों को बहुत कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता था, जैसे लंबे घंटों की मेहनत, कम वेतन और कोई छुट्टी नहीं। लेकिन कई आंदोलन और संघर्षों के बाद मजदूरों को उनके हक और बेहतर कामकाजी स्थिति मिली। इसी संघर्ष की याद में मजदूर दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि मेहनत करने वालों का सम्मान करना चाहिए और उनके अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। समाज तभी आगे बढ़ सकता है जब हर वर्ग को बराबरी का हक और सम्मान मिले।