Kolkata: देश के कई हिस्सों में लोकप्रिय पान के पत्तों को बेचने वाले पिंटू अपने जुनून को पूरा करने के लिए दुकानदारी के साथ समय निकाल ही लेते हैं, जी हां, ये पान लगाने के साथ लघु कथाएं और उपन्यास भी लिखते हैं।
कोलकाता में मदन मोहन ताला के एक कोने में ये छोटी सी दुकान पिंटू का ऐसा संसार है, जहां वो कागज के पन्नों पर अपनी सोच से किस्से-कहानियों और उपन्यास भी गढ़ते रहते हैं। दो दशकों से अधिक समय में पान की दुकान चलाने वाले पिंटू अब तक 11 उपन्यास, 200 से अधिक लघु कथाएं और कई कविताएं लिख चुके हैं।
दुकानदार और लेखक पिंटू पोहन ने कहा कि “यह एक पान की दुकान है जहां मैं पान बेचता हूं, लेकिन पिछले 25 सालों से मैं यहां पढ़-लिख भी रहा हूं। गरीबी के कारण मैं बचपन से लेकर जवानी तक स्कूल या कॉलेज नहीं जा पाया। गुजारा करने के लिए मुझे कई तरह की मज़दूरी करनी पड़ी और फिर यह दुकान खोलनी पड़ी। एक बार जब मैंने यह पान की दुकान खोली, यहां बैठकर मैं पढ़ता-लिखता रहा।”
इसके साथ ही कहा कि “बचपन से ही मैं दो वक्त का रोटी नसीब नहीं होता था और न ही अच्छे कपड़े पहन पाता था। मैं बहुत निराश रहता था और उस निराशा से बचने के लिए किताबें मेरी सच्ची दोस्त बन गईं, यहीं से किताबों के प्रति मेरा प्रेम जागरुक हुआ।”
आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आने वाले पिंटू ने बचपन के संघर्षों से बचने के लिए किताबों का आसरा लिया और ये उस दौर की बात है जब उनके लिए दो वक्त का खाना जुटाना भी काफी मुश्किल भरा काम था। पिछले कुछ सालों में उनकी छोटी सी दुकान ने न केवल साहित्य प्रेमियों को बल्कि बांग्ला सीखने वालों को भी अपनी ओर आकर्षित किया है।
सड़क किनारे की पानी की दुकान लगाने से लेकर मशहूर साहित्यिक पन्नों तक पिंटू पोहन की रचनाएँ बंगाली प्रकाशन के जरिए लोगों के पास पहुंच रही हैं। पिंटू ने दिखाया है कि हालात धारा के कितने भी विपरीत हों। मजबूत इच्छा शक्ति से अपने जुनून को रोजमर्रा के कामकाजी जीवन में बनाए रखा जा सकता है।
वहीं पर्यटकों का कहना है कि “मैं यहां बंगाली सीखने आया था, मुझे विभिन्न पूर्वी भारतीय-यूरोपीय भाषाओं में बहुत रुचि थी और बंगाली संभवतः सबसे पूर्वी प्रमुख भारतीय भाषा है।”