Jammu: कश्मीर के पुलवामा जिले का ओखू गांव ‘भारत के पेंसिल गांव’ के नाम से मशहूर है। इसकी खास वजह है, यह गांव पूरे देश को पेंसिल बनाने के लिए करीब 90 फीसदी कच्चा माल सप्लाई करता है, इस उद्योग से बड़ी संख्या में बिहार, पश्चिम बंगाल और असम के प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिलता है, लेकिन अब चिनार की लकड़ी की कमी से ये उद्योग संकट में है।
इस गांव को देश भर में 2020 में पहचान मिली, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ रेडियो कार्यक्रम में इसकी कामयाबी की तारीफ की। उन्होंने पुलवामा को पेंसिल उद्योग का उभरता हुआ केंद्र बताया था, अब पेंसिल बनाने वालों का कहना है कि भारी-भरकम जीएसटी दर और बिजली की कमी से उद्योग को नुकसान पहुंच रहा है।
पेंसिल उद्योग की उम्मीदें विधानसभा चुनाव पर टिकी हैं। उन्हें नई सरकार से अपनी परेशानियां दूर करने की आस है, उद्योग के जानकारों का कहना है कि पारंपरिक तौर पर चिनार के पेड़ सामुदायिक जमीन पर लगाए जाते थे। वे टिकाऊ थे, पर्यावरण के अनुकूल थे और लगातार कच्चा माल मुहैया कराते थे।
उन्हें उम्मीद है कि नई सरकार इस ओर ध्यान देगी और जरूरी कार्रवाई करेगी, जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए तीन दौर में वोटिंग होनी है। पुलवामा में पहले दौर में 18 सितंबर को वोट डाले जाएंगे। पेंसिल फैक्ट्री के मैनेजर गुलाम मोहम्मद डार ने बताया कि “बात दरअसल यह है कि जो पेंसिल बनता है ये रॉ मटेरियल जो कश्मीरी पोपलर आता है, पोपलर से बनता है ये रॉ मैटेरियल यहां, बाकी जो पेंसिल बनता हैै लेयर वगैरह लगाकर वो जम्मू में बनता है। यहां सिर्फ खाम माल होता है। ये जो यहां का पोपलर है वो सेकेंड डॉट है। इसलिए इसका जो पेंसिल बनता है वो नरम होता है। उसकी हर जगह से डिमांड आती है कि यही पेंसिल चाहिए हम को।”
उन्होंने कहा कि “समस्याएं तो बहुत है हमारी, एक तो टैक्स, इसमें पहले तो ये लोकल का माल था। इसमें टैक्स नहीं लगना चाहिए था। अभी भी टैक्स इस पर लग रहा है। दूसरा ये हुआ कि आज से दो साल पहले गवर्नमेंट ने एक ऑर्डर निकाला कि घास तराई को खत्म कर दो। यहां घास तराई में जमीनदारों ने ये पेड़ उगाए थे तो गवर्नमेंट एकदम हरकत में आ गई और उन्होंने एकदम वो काट दिए। इस तरह क्या हो गया। उस साल माल सस्ता हो गया। एक ही साल निकला उसको, अब जब माल ढूंढने जाते हैं मिलता ही नहीं माल। समस्या यही है कि सरकार थोड़ा ध्यान दे कि दिन ब दिन जो ये वुड है, ये वुड कम हो रहा है, क्योंकि इस पर और भी इंडस्ट्री है। प्लाईवुड इंडस्ट्री इस पर है। तो थोड़ा सा ध्यान अगर सरकार देगी इसकी प्रोडक्शन के लिए तो पीछे भी बहुत बार मैंने यही रिक्वेस्ट किया है थोड़ा सरकार इस पर दिन ब दिन इसकी प्रोडक्शन हो जो वुड की कम हो रही है। एक प्रॉब्लम है हमारे यहां पावर सप्लाई की, अभी दो-तीन महीने जुन, जुलाई और अगस्त ये तीन महीने खेती होती है ना धान की तो इन तीन महीनों में पावर ठीक रहता है। अगस्त से लेकर सितंबर से लेकर पूरा जून तक पावर की कटौती होती है। तकरीबन हमें डेढ़ लाख का डीजल लाना पड़ता है महीने के लिए।”
इसके साथ ही बताया कि “दूसरा हमारा यह है कि थोड़ा सा जीएसटी है, क्योंकि हमारा जीएसटी इसमें 12 प्रतिशत है और मुझे लग रहा है कि जो बड़े-बड़े इंडस्ट्री है उनमें भी यही जीएसटी है। थोड़ी उसमें रिलैक्सेशन होना चाहिए। ये प्रोडक्ट बच्चों के लिए है, जो हमारी लाइफ जिससे स्टार्ट होती है पेंसिल से तो वो प्रोडक्ट इसमें बन रहा है। इसमें थोड़ा हो जाए, ताकि हम आगे और देशों के साथ मुकाबला कर सकते हैं। हमने बार-बार तो अपील की है सरकार से, लेकिन अब लगता है कि चुनाव आ रहे हैं सरकार बनेगी तो लगता है कि मुश्किलें हल हो जाएंगी। जब किसी की सरकार बनेगी तो कुछ ना कुछ कर सकती है।”
उन्होंने कहा कि “इससे भी हमारी कुछ उम्मीदें हैं कि चुनाव होगा और हम मंत्री के पास जाएंगे। वो समझाएंगे कि हमारी ये दिक्कत है, क्योंकि गवर्नमेंट लैंड भी बहुत पड़ी है, मतलब इतनी लैंड पड़ी है कि उसमें कुछ इसके सिवा बनेगा ही नहीं। कम से कम उसको लोगों को ही लगाने देगा, कुछ सरकार भी अपना परसंटेज रखता था, लोगों का भी चलता था ऐसी बेकार पड़ी है बहुत सी लैंड है गवर्नमेंट की जो फ्लड रिलेटेड है। जिसमें इसके सिवा कुछ और उगेगा ही नहीं, यही पेड़ है। इस पेड़ के लिए पानी चाहिए। इसके लिए जो भी फ्लड एरिया है इसके लिए सही है।”