India: वैश्विक संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम को 40 फीसदी फंडिंग कटौती के कारण दुनिया में भूख की समस्या बढ़ रही है, इसी बीच भारत ने अपने अन्न संकट से निकलकर अब विश्व के लिए मदद देने वाला देश बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
डब्ल्यूएफ के कार्यकारी निदेशक कार्ल स्काऊ ने बताया कि पश्चिमी देशों द्वारा वित्तीय सहयोग कम होने के कारण भारत जैसे उभरते देशों के साथ सहयोग करना बहुत जरूरी हो गया है। उन्होंने कहा कि भारत के घरेलू समाधान, जैसे ग्रेन एटीएम और पोषित चावल, अफ्रीका और एशिया के संकटग्रस्त क्षेत्रों के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं।
डब्ल्यूएफ भारत के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने जा रहा है, जिससे भारत से पोषित चावल की खरीद को सुनिश्चित किया जाएगा। यह कदम संकट के समय त्वरित और बेहतर मदद पहुंचाने में मदद करेगा। भारत की स्मार्ट वेयरहाउसिंग और सप्लाई चेन तकनीक से डब्ल्यूएफ को करीब 30 मिलियन डॉलर की बचत भी हुई है।
भारत का राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और मिड-डे मील योजना अन्य देशों के लिए मॉडल बन रही हैं, डब्ल्यूएफ इन सफलताओं को साझा करने के लिए भारत में “केंद्र ऑफ एक्सीलेंस” बनाने की योजना भी बना रहा है।
कार्ल स्काऊ ने कहा कि भारत की बढ़ती कूटनीतिक ताकत से अफगानिस्तान, म्यांमार, यमन और गाजा जैसे संघर्ष क्षेत्र में मानवीय सहायता पहुंचाने में मदद मिलेगी। गाजा में जहां भुखमरी की स्थिति है, वहां डब्ल्यूएफ को रोजाना 300-400 ट्रक जरूरत है, जबकि वर्तमान में केवल 100 ट्रक ही पहुंच पाते हैं।
उन्होंने कहा कि वित्तीय कटौती के कारण डब्ल्यूएफ को बहुत मुश्किल फैसले लेने पड़ रहे हैं, जैसे अफगानिस्तान में सहायता प्राप्त लोगों की संख्या तीन साल पहले लगभग 10 मिलियन थी जो अब घटकर 1-2 मिलियन रह गई है। विश्व खाद्य सुरक्षा को खतरा बताते हुए स्काऊ ने सरकारों, व्यवसायों और आम जनता से अधिक संसाधन और कूटनीतिक समर्थन देने की अपील की। उन्होंने भारत के निजी क्षेत्र और नागरिकों से भी मदद की उम्मीद जताई।
डब्ल्यूएफ ने चेतावनी दी है कि यदि इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया तो 2030 तक भूखमरी समाप्त करने का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा और लाखों लोगों की जान जोखिम में होगी। इस समय भारत और डब्ल्यूएफ का साझेदारी विश्व के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो गई है।