Goa: पणजी में बड़े उत्साह से मनाया गया ‘चिखल कालो त्योहार’

Goa: गोवा में पणजी के मार्सेल गांव में लोगों ने चिखल कालो नाम से मशहूर पारंपरिक मिट्टी का त्योहार मनाया, इस त्योहार को मनाने के लिए सैकड़ों लोग मार्सेल के देवकी कृष्ण मंदिर में इकट्ठा हुए।

इस दिन की शुरुआत देवकी कृष्ण मंदिर में प्रार्थना से होती है, इसके बाद इलाके के लोग खुले मैदान में मिट्टी से खेलते हैं, यह त्योहार स्पेन के टोमाटीना त्योहार की तरह है। राज्य के टूरिज्म विभाग ने इस आयोजन को राज्य स्तरीय त्योहार की मान्यता दी है। ये हर साल मानसून शुरू होने के बाद मनाया जाता है।

टूरिज्म मंत्री रोहन खाउंटे ने भी इस उत्सव में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि “चिखल कालो उत्सव परंपरा है, संस्कृति है, यह कोई त्योहार नहीं है। सालों से हमारी पुरानी पीढ़ी इसे मनाती आ रही है, पहले लोगों को इसके बारे में पता नहीं था। हम मिट्टी और बारिश से जुड़े हुए हैं और हमारे मन में इसके लिए सम्मान है। उन दिनों जब लोगों के पास खेत नहीं थे, वे मिट्टी में आकर खेलते थे और इस तरह ये परंपरा आज भी जिंदा है।”

चिखल कालो उत्सव मार्सेल गांव का बड़ा त्योहार है। इसमें लोग भजन गाते हैं। इसमें चेंदू फली (क्रिकेट जैसा) और गिल्ली डंडा जैसे पारंपरिक खेल खेला जाता है। टूरिज्म मिनिस्टर रोहन खुंटे ने बताया कि “चिखल कालो उत्सव जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं। ये परंपरा है और ये संस्कृति है। ये कोई त्यौहार नहीं है। सालों से हमारी पुरानी पीढ़ी इसे मनाती आ रही है। पहले लोगों को इसके बारे में पता नहीं था। हम मिट्टी और बारिश से जुड़े हुए हैं और हमारे मन में इसके लिए सम्मान है। उन दिनों जब लोगों के पास खेत नहीं थे, वे मिट्टी में आकर खेलते थे और इस तरह ये परंपरा आज भी जिंदा है।”

इसके साथ ही स्थानीय लोगों का कहना है कि “मार्सेल गांव 30-40 टेंपल से भरा हुआ है। इधर इतना वाइब्रेशन आपको मिलता है कि बहुत सुकून मिलता है और गोपाल कृष्ण का जो ये कला है वो आषाढ़ी एकादशी के अगले दिन जिसे हम द्वादशी बोलते है वे सप्ताह मनाने हैं। 24 सप्ताह का भजन सप्ताह के बाद जो आज हमने जो कला किया है उसको चिखल कला बोलते है, इसलिए क्योंकि हम ग्राउंड पर चिखल में खेलते है। जो अलग-अलग प्रकार के जो खेल है गोपाल कृष्ण के। तो हम सभी बाल गोपाल मिलकर ये खेल खेलते है।”

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