Goa: मानसून के दौरान खाने की तैयारी, पारंपरिक ‘पुरुमेंट’ के साथ

Goa: सूखी मछली से लेकर मसालों तक, अचार और तरह-तरह के पकवान, गर्मी चढ़ते ही गोवा के बाजार पारंपरिक पकवानों से भर गए हैं। बाजारों में चहल-पहल बढ़ गई है। मानसून के संकेत के साथ राज्य भर में लोग ‘पुरुमेंट’ की पुरानी परंपरा निभा रहे हैं। ‘पुरुमेंट’ का सालाना अनुष्ठान गोवा की संस्कृति में गहरा पैठा हुआ है। इसका मकसद मानसून के दौरान इस्तेमाल के लिए खाने का सामान इकट्ठा करना है। ‘पुरुमेंट’ शब्द पुर्तगाली शब्द प्रोविसो से बना है। इसका मतलब है “प्रावधान”। ये शब्द गोवा के औपनिवेशिक और सांस्कृतिक अतीत की ओर इशारा करता है।

‘पुरुमेंट’ की ग्रामीण और तटीय समुदायों में खास अहमियत है। यहां हर साल मानसून के समय ताजा उपज मिलना मुश्किल हो जाता है। पुरुमेंट में खास कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। इसमें सैलानियों को गोवा के खास पकवानों और हस्तशिल्प से रुबरु कराया जाता है। सूखी मछली, कोकम और घर के बने मसालों जैसे पारंपरिक सामानों की काफी मांग है। कई परिवारों के लिए ये समय चटनी, पापड़ और दूसरे संरक्षित खाद्य पदार्थ तैयार करने और जमा करने का भी होता है, जिसका मानसून के दौरान इस्तेमाल किया जाता है।

आधुनिक सुविधाओं और बेहतर बुनियादी ढांचे के बावजूद, पुरुमेंट गोवा का रिवाज है। ये पारंपरिक-सांस्कृतिक गौरव, व्यावहारिकता और दूरदर्शिता के साथ समुदायिकता के महत्व को सामने लाता है। पुरुमेंट सिर्फ खाना ही नहीं, एक जीवन शैली है। इसमें लोग न केवल जिंदा रहने की तैयारी करते हैं, बल्कि मानसून में भी पारंपरिक व्यंजनों का जायका लेना जारी रखते हैं।

पणजी के निवासी मारियस फर्नांडीस ने जानकारी देते हुए कहा, “पुरुमेंट गोवा में और खास तौर पर मई के लिए मशहूर शब्द है, जब हम गोवा में जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर में होने वाली भारी बारिश की तैयारी करते हैं। पुराने दिनों में फ्रिज नहीं थे। इसलिए वे अपने खाद्य पदार्थ सुखा कर रखते थे। आम, काजू, सब्जियां- सब कुछ सुखा कर रखा जाता था। इसलिए मानसून के महीनों के लिए सिरके, अचार तैयार हो रहे हैं। पुर्तगाली में इस शब्द को ‘प्रोविसो’ कहा जाता है। अंग्रेजी में इसका मतलब है प्रावधान के लिए तैयार होना।”

“तीन महीने आपको मछली पकड़ने की अनुमति नहीं होती है। इसलिए आपको तैयार रहना पड़ता है। हम मई में मछलियां सुखाते हैं। इसे खारे कहते हैं। सूखी मछली का इस्तेमाल बारिश के दौरान किया जाता है। यदि आप चावल, आम का अचार और दूसरे स्थानीय पकवान खाना चाहते हैं, तो ये तैयारी का समय है। अब आप तीन महीने के लिए तैयारी करें। ऐसी चीज दुनिया में कहीं और नहीं होती है। ये गोवा के हर गांव के लिए अनोखी बात है। अगर आप गांवों में जाएं तो वहां भी सारे लोग तैयारियां कर रहे हैं।”

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