Diwali season: दिल्ली में उत्तम नगर की कुम्हार गली में इन दिनों भारी हलचल है। हर कोई रोशनी के त्योहार की तैयारी में जुटा है, मिट्टी के बर्तन के लिए मशहूर संकरी गली करीने से तैयार मिट्टी की बर्तनों से भरी है। दिवाली नजदीक आने के साथ कुम्हार गली में कारीगरों का कामकाज बढ़ता जा रहा है। वे दीये, देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्तियां और दूसरे सजावटी सामान तैयार कर रहे हैं।
कुम्हार गली की खासियत है, परंपरा को आधुनिकता के साथ मिलाना। यहां बिना रंगे लैंपों से लेकर रंगीन, हाथ से बनाए महीन डिजाइन तक देखने को मिलते हैं, इनकी भारी मांग है। दुकानदारों का कहना है कि “यह सारी चीजें मिट्टी से बनी हुईं हैं। जो कि ये सिंपल आते हैं तो हमारे वर्कर वगैरा ने ये तैयार वैगरा कलर किया और हमारी कुछ लेडिज्स पीछे काम करतीं हैं हमने उनसे ये डेकोरेशन वगैरा कराए हैं इसको। वैक्स हमारे लड़कों ने भरे हैं, पैकेट बनाए हैं।”
रंग-बिरंगे दुकानों के सामने खरीदारों की भीड़ दिखती है। टेराकोटा फूलदान, मोमबत्ती स्टैंड और दीवार पर लटकने वाली सजावट के अलावा कतार में दीये देखने को मिलते हैं। चमकीले रंगों और हाथ से महीनी से पेंट की गई लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की मांग सबसे ज्यादा है। कई विकल्प पर्यावरण के अनुकूल हैं।
खरीदारों ने बताया कि “सबसे पहले, यह बाजार बहुत अनोखा है। अगर आप दिल्ली में और जगह देखेंगे जो मार्केट हैं उन में क्वालिटी कहीं न कहीं कॉम्प्रोमाइज है। ये लोगों की क्वालिटी है और क्रिएटिव। मैं हर साल दिवाली पर यहां लेने आता हूं और मैं हमेशा देखता हूं कि हर कुछ नया मिलता है। जैसे अब दीया देखिए, सिर्फ 30 रुपये का है। तो इतना अच्छा दीया अगर किसी मॉल में होता तो शायद 100, 200 रुपये का होता। तो यहां पर सस्ते प्राइज में अच्छे क्वालिटी और नया मिलता है। इसलिए मैं हर बार दिवाली के लिए यहां आना पसंद करता हूं।”
जीवंत माहौल के बावजूद कुम्हार गली के कारीगरों की जिंदगी कठिन है। कच्चे माल की बढ़ती लागत, फैक्ट्री में बने सामानों से प्रतिस्पर्धा और सीमित समय के लिए मांग उनकी सबसे बड़ी चुनौतियां हैं।
साल भर में दिवाली ही कुम्हारों का सबसे व्यस्त समय रहता है। इस दौरान बनाए गए मिट्टी के बर्तन पूरे परिवार को आर्थिक संबल देते हैं, दिल्ली की दिवाली अनोखी है। यहां आधुनिकता की महक के साथ पारंपरिक विरासत की झलक देखने को मिलती है।