Delimitation: परिसीमन क्या है और इसे लेकर क्यों जारी है राजनैतिक बहस

Delimitation: परिसीमन का मतलब किसी चीज की सीमा या सीमाएं तय करना है, परिसीमन देश में नया राजनैतिक मुद्दा बन चुका है और इसे लेकर लोगों की राय बंटी दिख रही है। देश में जनगणना लंबे वक्त से अटकी है। जनगणना होने के बाद ही संसदीय और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन की प्रक्रिया किसी भी वक्त हो सकती है। कई राजनैतिक दल परिसीमन का समर्थन कर रहे हैं तो कई इसके विरोध में आवाज बुलंद करते दिख रहे हैं।

उत्तरी और पूर्वी भारत के राज्य बड़ी आबादी होने के बावजूद संसद में कम प्रतिनिधित्व की शिकायत सालों से करते रहे हैं, दूसरी ओर दक्षिणी राज्यों की पार्टियों को डर है कि जनसंख्या नियंत्रण उपायों को सफलतापूर्वक लागू करने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स डायरेक्टर ए. के. वर्मा ने कहा कि “मैं कह सकता हूं कि कुछ चीजें हैं जो परिसीमन आयोग के माध्यम से की जानी चाहिए। ये निकाय भारत में परिसीमन का काम करता है। उसे यह सिफारिश करनी है कि संघीय स्तर पर, राज्य स्तर पर, केंद्र शासित प्रदेश स्तर पर और एनसीटी स्तर पर, यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में विधायिका में सीटों की इष्टतम संख्या क्या होनी चाहिए। ये पहली चीज है जो उसे करनी है।”

1952 में पहली बार परिसीमन के बाद, 1951 की जनगणना के आधार पर 494 लोकसभा सीटें आवंटित की गईं, 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद 1963 में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 522 हो गई, 1971 की जनगणना के आधार पर 1973 में परिसीमन के बाद लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 543 हो गई।

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के डायरेक्टर ए. के. वर्मा ने कहा कि  “इसका कारण यह था कि 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या अनुमान इस तथ्य की ओर इशारा कर रहे थे कि अगली चौथाई सदी में, एक चौथाई सदी में, राष्ट्र प्रतिस्थापन वृद्धि दर तक पहुंच जाएगा, जिसका अर्थ है कि अगर एक्स संख्या में लोग पैदा होते हैं, तो एक्स संख्या में लोग मरेंगे। इसका मतलब है कि एक संकेत था कि 2026 तक, जनसंख्या में प्रतिस्थापन वृद्धि दर संभवतः देश की जनसंख्या को स्थिर कर देगी।”

चिंताएं इस बात से पैदा हुईं कि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जनसंख्या वृद्धि ज्यादा देखी गई है। जबकि तमिलनाडु और केरल जैसे दक्षिणी राज्यों ने अपनी प्रजनन दर को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया है। ए. के. वर्मा, डायरेक्टर, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स ” दक्षिणी राज्यों और (14:40) कुछ उत्तरी राज्यों, छोटे राज्यों में, उत्तरी राज्यों में एक प्रकार की घबराहट है कि अगर परिसीमन (14:46) मौजूदा या परंपरागत संवैधानिक आधार पर किया जाता है, तो दक्षिणी राज्यों को आनुपातिक रूप से (14:57) सीटों का नुकसान हो सकता है या उत्तर प्रदेश, बिहार, (15:05) मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि जैसे दूसरे उत्तरी राज्यों के मुकाबले उन्हें फायदा नहीं मिल सकता है।”

तमिलनाडु में डीएमके और तेलंगाना में बीआरएस जैसे कुछ राजनैतिक दलों को डर है कि नए परिसीमन से उनके राज्यों में संसदीय सीटें कम हो सकती हैं, उनका कहना है कि ये सही नहीं होगा क्योंकि इन राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण उपायों को सफलतापूर्वक लागू किया है। मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने कहा कि “हमने दशकों से तमिलनाडु में सफल परिवार नियोजन कार्यक्रम और महिला शिक्षा के माध्यम से जागरूकता पैदा करने में कामयाबी हासिल की है। इसकी वजह से, जनसंख्या में कमी के कारण तमिलनाडु में संसदीय सीटों की संख्या कम होने का खतरा है। तमिलनाडु को आठ सीटों का नुकसान हो सकता है, वहां सिर्फ 31 सांसद होंगे।”

बीआरएस नेता के. टी. रामाराव ने कहा कि “अब समय आ गया है कि हम एकजुट होकर परिसीमन के खिलाफ लड़ें। ऐसी अटकलें हैं कि परिसीमन के कारण तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों में संसदीय सीटों की संख्या कम हो सकती है। उनका मानना ​​है कि अगर हम सामूहिक रूप से लड़ेंगे तो हम दक्षिणी राज्यों के लिए न्याय सुनिश्चित कर सकते हैं।”

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इन आशंकाओं को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा कि परिसीमन प्रक्रिया का दक्षिणी राज्यों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि “प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में स्पष्ट रूप से कहा है कि परिसीमन के बाद, आनुपातिक रूप से, दक्षिणी राज्यों में सीटों का जरा भी नुकसान नहीं होगा। मोदी जी ने निश्चित रूप से आप सभी के हितों की रक्षा करते हुए ये सुनिश्चित किया है कि परिसीमन के साथ आपको आनुपातिक रूप से एक भी सीट का नुकसान न हो, और सीटों की कुल वृद्धि में दक्षिण भारत का बड़ा हिस्सा हो। यहां आशंका की कोई जरूरत नहीं है।”

हालांकि कुछ जानकारों का मानना ​​है कि अगर निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण सिर्फ जनसंख्या के आधार पर किया गया तो उत्तरी राज्यों को ज्यादा सीटें मिलेंगी, जिससे दक्षिणी राज्यों को नुकसान होगा। डेटा साइंटिस्ट नीलकंठन आरएस ने कहा कि “अब जबकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों को सांसदों की संख्या में वृद्धि होगी, है न? अब, वही समस्या जिसे हमने पहले एक काल्पनिक या सैद्धांतिक विचार के रूप में देखा था, वो वास्तविकता बन गई है, जो ये है कि जिन राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण को सफलतापूर्वक लागू किया है, उन्हें राजनैतिक प्रतिनिधित्व खोने से नुकसान होगा। जबकि जिन राज्यों ने ऐसा नहीं किया है, उन्हें फायदा मिलेगा। तो ये एक तरह से ऐसा है कि केंद्र सरकार ने राज्यों से एक्स करने के लिए कहा। जिन राज्यों ने एक्स को सही ढंग से किया, वे अब प्रतिनिधित्व खो देंगे, और जिन राज्यों ने एक्स नहीं किया, उन्हें प्रतिनिधित्व मिलेगा। और जब स्थिति ऐसी हो जाएगी तो निश्चित रूप से दक्षिणी राज्य विरोध करेंगे।”

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