Covid vaccine: कोविड वैक्सीन टीकों और दिल के दौरे से होने वाली मौतों के बीच कोई संबध नहीं- स्वास्थ्य मंत्रालय

Covid vaccine:  कर्नाटक के हासन जिले में दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत के मामलों को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया द्वारा कोविड रोधी टीकों से जोड़ने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा किए गए व्यापक अध्ययनों ने निर्णायक रूप से स्थापित किया है कि कोरोना वायरस रोधी टीकों और अचानक हुई मौतों के बीच कोई संबंध नहीं है।

सिद्धरमैया ने कहा था कि जल्दबाजी में कोविड टीके को ‘‘हड़बड़ी में मंजूरी देना और लोगों को लगाना’’ भी इन मौतों का एक कारण हो सकता है। उन्होंने सभी लोगों से आग्रह किया कि अगर उन्हें सीने में दर्द या सांस लेने में कठिनाई हो, तो वे तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर जांच कराएं और इसे नजरअंदाज न करें।

मंत्रालय ने कहा कि देश में कई एजेंसियों के जरिेए से अचानक और अस्पष्ट कारणों से मौत के मामलों की जांच की गई है और इन अध्ययनों से ये निर्णायक रूप से स्थापित हो गया है कि कोविड-19 टीकाकरण और अचानक मौतों की रिपोर्ट के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है।

उसने कहा कि आईसीएमआर और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) द्वारा किए गए अध्ययनों से पुष्टि होती है कि भारत में कोविड-19 टीके सुरक्षित और प्रभावी हैं और इनके गंभीर दुष्प्रभाव के मामले बेहद कम हैं। मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि अचानक हृदयाघात के पीछे आनुवांशिक कारण, जीवनशैली, पहले से मौजूद बीमारियां और कोविड के बाद की जटिलताएं जैसे कई कारण हो सकते हैं।

आईसीएमआर और एनसीडीसी खासकर 18 से 45 वर्ष के वयस्कों में अचानक और अस्पष्ट कारणों से मौत की वजहों को समझने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। इस उद्देश्य के लिए दो पूरक अध्ययन किए गए, जिनमें अलग-अलग शोध पद्धतियों का उपयोग किया गया। एक अध्ययन पूर्ववर्ती डेटा (पिछले रिकॉर्ड) पर आधारित था, जबकि दूसरा वास्तविक समय की जांच पर केंद्रित था। मंत्रालय ने कहा कि इस अध्ययन को मई से अगस्त 2023 के बीच देश के 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित 47 तृतीयक स्तर के अस्पतालों में किया गया।

अध्ययन में उन व्यक्तियों को शामिल किया गया जो देखने में पूरी तरह स्वस्थ थे, लेकिन अक्टूबर 2021 से मार्च 2023 के बीच अचानक उनकी मृत्यु हो गयी। निष्कर्षों से यह स्पष्ट रूप से पता चला है कि कोविड-19 टीकाकरण से युवा वयस्कों में अचानक मृत्यु का जोखिम नहीं बढ़ता है। दूसरे अध्ययन का शीर्षक है ‘‘युवाओं में अचानक मौत के कारणों की पहचान’’।

इस अध्ययन को वर्तमान में एम्स, नई दिल्ली द्वारा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग और वित्तपोषण से किया जा रहा है। बयान में कहा गया है कि इस अध्ययन का उद्देश्य युवाओं की अचानक मौत के सामान्य कारणों की पहचान करना है। इस अध्ययन से प्राप्त शुरुआती आंकड़ों का विश्लेषण यह दर्शाता है कि हृदयाघात इस आयु वर्ग में अचानक मृत्यु का प्रमुख कारण बना हुआ है।

ये अध्ययन बताता है कि भारत में युवाओं में अचानक हुई मौत के कारणों की प्रवृत्ति में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं देखा गया है। अधिकांश मामलों में जेनेटिक म्यूटेशन (आनुवंशिक उत्परिवर्तन) को संभावित कारण के रूप में पहचाना गया है, अध्ययन पूरा होने के बाद अंतिम निष्कर्ष साझा किए जाएंगे।

इन दोनों अध्ययनों ने मिलकर भारत में 18 से 45 वर्ष की आयु के युवाओं में होने वाली अचानक मृत्यु के कारणों की बेहतर और व्यापक समझ प्रदान की है। बयान में कहा गया है कि यह भी पाया गया है कि कोविड-19 टीकाकरण से जोखिम नहीं बढ़ता है, जबकि अंतर्निहित स्वास्थ्य समस्याएं, आनुवांशिक प्रवृत्ति और जोखिम भरी जीवनशैली की अचानक मौत के मामलों में भूमिका होती है।

बयान में कहा गया है, ‘‘वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने दोहराया है कि कोविड टीकाकरण को अचानक मौतों से जोड़ने वाले बयान झूठे और भ्रामक हैं और इन्हें वैज्ञानिकों की आम सहमति प्राप्त नहीं है।’’ स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि निर्णायक साक्ष्यों के बिना किए गए अटकलों पर आधारित दावे न केवल भ्रामक होते हैं, बल्कि टीकों पर जनता के भरोसे को कमजोर भी कर सकते हैं, जबकि इन टीकों ने कोविड-19 महामारी के दौरान लाखों जानें बचाने में अहम भूमिका निभाई है।

उसने कहा कि ऐसे बेबुनियादी दावों से देश में टीका लगवाने को लेकर झिझक को बढ़ावा मिल सकता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने कहा है कि अकेले हासन जिले में ही पिछले महीने दिल के दौरे से 20 से अधिक लोगों की मौत हो गई है। उन्होंने ‘एक्स’ पर कहा, “राज्य सरकार इस मामले को बहुत गंभीरता से ले रही है।

इन मौतों के वास्तविक कारण का पता लगाने और समाधान खोजने के लिए जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवैस्कुलर साइंसेज एंड रिसर्च के निदेशक डॉ. रवींद्रनाथ के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक समिति बनाई गई है और उन्हें 10 दिन के भीतर अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।’’

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