Ujjain: मध्य प्रदेश के उज्जैन में एक महिला स्वयं सहायता समूह ने फूलों को रीसाईकिल करना शुरू किया है, यह फूल मंदिरों में चढ़ाए जाते हैं। स्वयं सहायता समूह रोजाना हर मंदिर से फूलों का कचरा जमा करता है, फूलों को अलग करके सुखाता है। फिर उनका पाउडर बनाकर उससे अगरबत्ती, रंग और दूसरे सामान बनाए जाते हैं, महिलाओं के मुताबिक हाल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उज्जैन में एक प्रदर्शनी में उनके स्टॉल पर आई थीं और उन्हें प्रोत्साहित किया था।
फूलों की रीसाईकिलिंग से न सिर्फ पर्यावरण सुरक्षित रहता है, बल्कि महिलाओं को रोजगार भी मिलता है। वे हर महीने 10,000 रुपये तक कमा रही हैं। स्वयं सहायता समूह के संयोजक दीपाली अरोड़ा ने कहा कि “सबसे पहले फूलों को कलेक्ट करते हैं। महाकालेश्वर टेम्पल और अदर जो भी अन्य टेम्पल हैं, सारे फूलों को लाते हैं। उनको अलग-अलग करते हैं, उसको सेग्रीगेशन कहते हैं। सेग्रीगेट करके उनको सुखाते हैं। सुखा के उनकी सूरती, उनको पाउडर फॉर्म में बना के उनको प्यूरिफाई करके उसकी अगरबत्ती, धूपबत्ती, समरानिका, तिलक, होली के गुलाल बनाते हैं। प्योर ऑर्गेनिक गुलाल बनाते हैं।”
स्वयं सहायता समूह के सदस्यों का कहना है कि “दो से चार दिन तो लगते ही हैं, सूखने में। मतलब आठ दिन लग जाते हैं फूल को सूखने में। फूल सूखने के बाद ही हम उसका मसाला तैयार करते हैं। उसके बाद फिर उसमें, उसका हम बनाते हैं। उसकी अगरबत्ती वगैरह बनाई जाती है।
“फूल का गाड़ी आती है। फिर हम उसको अलग-अलग करते हैं, अलग-अलग करने के बाद उसको सुखाते हैं। सूखने में एक हफ्ता तो लग ही जाता है, पूरी तरह सूखने में, फिर उसको मशीन में ले जाके पीसते हैं। पीसने के बाद फिर पाउडर हमारा रेडी हो जाता है। पाउडर बनने के बाद फिर हम धूप बत्ती की मशीन में डालते हैं।”
यह काम जोर पकड़ रहा है, प्रशासन इसकी तारीफ कर रहा है, प्रशासन इसकी मिसाल देश भर के दूसरे शहरों में भी पेश करने की योजना बना रहा है, ताकि वहां भी फूलों को रीसाईकिल कर पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके।
उज्जैन नगर निगम के डिप्टी कमिश्नर योगेंद्र सिंह पटेल ने कहा कि “अभी तक फूलों से मैन्योर ही बनता था। खाद ही बनता था। लेकिन हम नई चीज लेकर आए हैं। कन्सेप्ट लेकर आए हैं, इनका स्टार्ट अप था। इनको उसमें काम में लगाया तो इन्होंने फूलों को, हमने ये व्यवस्था बनाई कि महाकाल मंदिर के फूल, हरसिद्धि, मंगलनाथ- सभी मंदिरों के फूल वहां पर, हमारा मंगला मंदिर के पास जो प्लांट है, वहां पर लाए जा रहे हैं। वहां पे सेग्रीगेशन होता है। सेग्रीगेशन के बाद में इनके पेटल्स अलग कर लिए जाते हैं। अगर वो मेरीगोल्ड के फ्लावर हैं, उनका अलग हो जाता है। गुलाब के फूल अलग हो जाते हैं, अलग-अलग कैटेगरी में करके इनकी पहले अगरबत्ती बनती है।”