MP News: मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर गधों का अनूठा सालाना मेला लगता है, इस मेले में गधों की खरीद-फरोख्त की जाती है। देशभर के व्यापारी अपने खच्चरों और गधों के साथ मेले के आयोजन स्थल पर पहुंच चुके हैं।
प्रजापति समुदाय के लोग पारंपरिक रूप से गधों और खच्चरों का इस्तेमाल रेत, मिट्टी, ईंटों और कई दूसरे सामानों को ढोने के लिए करते रहे हैं। मेले में हर जानवर की कीमत उसकी उम्र के हिसाब से तय की जाती है। खरीदारों ने कहा कि वह दांतों को देखकर खरीद के लिए सबसे अच्छे जानवर की पहचान कर लेते हैं।
गधों के व्यापारी का कहना है कि मेला 11 से चालू होता है, ये कार्तिक की जो पूनम रात्रि है उस पर ये खत्म हो जाता है, 11 से चालू होता है। उसके बाद क्या है कि चारों दिशा के जानवर आते हैं, चारों दिशा मतलब ये है कि महाराष्ट्र, गुजरात, इधर राजस्थान, इधर गुना, दूर-दूर से व्यापारी आते हैं। दाहोद, गोधरा के व्यापारी आते हैं, महाराष्ट्र के व्यापारी आते हैं, आगरा से आते हैं और कई जगहों से आते हैं लेने के लिए।
मेले में पहुंचे व्यापारियों ने अपने गधों और दूसरे जानवरों को बेहतरीन अंदाज में सजाया और तैयार किया है ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक खिंचे चले आएं। इतना ही नहीं इन जानवरों पर टाइगर, अक्षय, राजा और रानी जैसे लुभाने वाले नाम भी लिखे गए हैं।
इसके साथ ही खरीदारों का कहना है कि “एक खरीदा लोगों ने 15-20 हजार के अंदर गधे बिक रहे हैं, अच्छे होंगे तो 20 हजार और सामान्य होगा तो 15 हजार। सारे गधे बिकने चाहिए अच्छे से मेला बढ़ना चाहिए।” मौजूदा वक्त में मेले में लगभग 300 गधे उपलब्ध हैं, उम्मीद है कि मेले की रौनक बढ़ने के साथ करीब पांच हजार गधे यहां पहुंचेंगे। कुछ खरीदारों का कहना है कि जानवरों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है, इसकी वजह से उनके लिए खरीदारी करना मुश्किल हो रहा है।