Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर बेंच ने सोमवार को कहा कि जैन समुदाय को 2014 में अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने के बावजूद वे हिंदू विवाह अधिनियम के दायरे में है। उच्च न्यायालय इंदौर परिवार न्यायालय के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश के आठ फरवरी के आदेश के खिलाफ एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत जैन समुदाय से ताल्लुक रखने वाले 37 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर और उसकी पत्नी (35) के आपसी सहमति से तलाक के आवेदन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
अपने आदेश में अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जैन समुदाय को 2014 में सरकार द्वारा अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने के बाद, इस धर्म के किसी भी अनुयायी को “अपने धर्म के विपरीत मान्यता रखने वाले किसी भी धर्म” से संबंधित पर्सनल लॉ का लाभ देना उचित नहीं लगता है।
वकील वर्षा गुप्ता ने कहा, “आठ फरवरी को ये याचिका दायर की गई थी। फैमिली कोर्ट इंदौर ने, एक जो जज थे, उन्होंने ये कहा था कि जैन समाज को हिंदू समाज की जितनी भी हिंदू लॉ के जितने भी कानून है उनका किसी भी रूप में पोशन नहीं देना चाहिए।
तो इस पर हमारी करीब 28 याचिका जो उस समय पेंडिंग थी वो वहां पर फैमिली कोर्ट में चल रहीं थीं वो एक साथ खारिज कर दी गई थी। इसके विरोध में हमने डबल बेंच में इंदौर में एक केस फाइल किया, याचिका फाइल की और उस पिटीशन में खुद जज साहब ने ये चीज को माना कि जैन समाज तो आज से नहीं पुरातन काल से हिंदू समाज का ही हिस्सा रहा है।”