Wular Lake: तीन दशक बाद वुलर झील में खिले कमल के फूल

Wular Lake: उत्तरी कश्मीर की वुलर झील को एशिया की मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झील कहा जाता है, लगभग तीन दशक के बाद इसमें कमल के फूल फिर से खिले हैं। ये सब 1992 में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद किए गए संरक्षण प्रयासों की बदौलत संभव हुआ है, कुदरत के कहर की वजह से इसका पूरा पारिस्थितिकी तंत्र तहस-नहस हो गया था।

वुलर झील संरक्षण और प्रबंधन परियोजना के अधिकारी मुदस्सिर अहमद ने बताया कि “हम अगर बार करेंगे 1992 में बहुत ज्यादा डिवार्सटेंटिंग फ्लड आ गया। यहां हम 2014 की बात करेंगे उसमें भी जो भी झेलम का आउट फ्लो था, वो उसी में जो भी सिलेट यहां सोइल यहां इसी में डिपोजिशन हो गया था। यहां पर पहले ड्रेजिंग की प्रोसेस के दौरान पहले उन्होंने यहां पर डिसिल्टेशन की। जो भी सिलेट हैं तो उसको नॉर्मल तरीके से जो हाइड्रोलॉजी उसको फिर रिटेन किया है। जो उसमें वाटर कैपेसिटी है तो फिर बहाल कर दिया। जब ड्रेजिंग की प्रोसेस कंप्लीट हो गई फिर दो-तीन साल के बाद ये फिर उगना शुरू किया है।”

“अगर हम मार्किट वेल्यू भी करेंगे, इकोनॉमिक वेल्यू भी देखेंगे। जो भी यहां पर बेरोजगारी है, यहां से अगर हम क्योंकि वल्व पर बहुत सारे गांव मुनतखिब हैं क्योंकि कम से कम एटलीस्ट 30 गांव इसी पर डिपेंड हैं। यहां से नदरू निकालेंगे अगर उनके जो रोजगार में जो इकोनॉमिक वो भी उससे बूस्ट हो जाएगा।”

कमल के फूल खिलने से इलाके के लोगों के चेहरे भी खिल उठे हैं, उन्हें उम्मीद है कि इसके तने, जिसे स्थानीय लोग ‘नदरू’ कहते हैं, उसकी खेती वो फिर से शुरू कर सकेंगे। पारंपरिक कश्मीरी व्यंजनों में ‘नदरू’ का इस्तेमाल किया जाता है, कश्मीरी खाने में ये बेसिक इंग्रेडिएंट्स होता है।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि “हम वुकमा (डब्ल्यूयूसीएमए) (वुलर झील संरक्षण एवं प्रबंधन परियोजना) डिपार्टमेंट से बहुत खुश हैं। यहां के लोकल बहुत खुश हैं इस चीज से कि यहां वुकमा डिपार्टमेंट ने यहां पर बहुत काम किया है यहां पर खुदाई करने के बाद लगभग 30 साल के बाद यहां पर जो है नादरू लोटस स्टीम जो है वो फिर से खिले हैं। हमारी यही गुजारिश है गवर्नमेंट से और वुकमा डिपार्टमेंट से की वो बाकी वुलर झील जो है उसमें खुदाई करे ताकि यहां के जो लोकल हैं वो इससे फायदा हासिल कर सकें।”

इलाके के लोगों ने वुलर में कमल की खेती को पुनर्जीवित करने में मदद के लिए अधिकारियों का अभार जताया। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इस तरह के प्रयास आगे भी जारी रहेंगे, ताकि भविष्य में कमल की खेती को बरकरार रखा जा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *