Rajouri: जम्मू कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे गांवों के लोगों की सरकार से गुहार

Rajouri: भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य कार्रवाई पर रोक के बाद जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास के गांवों में अब जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है, लगातार गोलाबारी की वजह से अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित जगहों पर जाने को मजबूर हुए लोग अब वापस लौट रहे हैं।

इलाके में फिलहाल शांति नजर आ रही है। हालांकि कई लोग आशंकित हैं कि तस्वीर फिर से बदल सकती है, अपने घरों को वापस लौटे लोग अब अपने रोजमर्रा के काम-काज और खेती-बाड़ी में जुट गए हैं। हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सीमा पार से लगातार गोलाबारी होने के बावजूद अपने घरों को छोड़कर नहीं गए। वे अपने घरों में रहते हुए भारतीय सेना का कंधे से कंधा मिलाकर साथ देना चाहते हैं।

हाल के दिनों में पाकिस्तान की तरफ से लगातार की गई गोलाबारी की वजह से लोगों को बंकरों में शरण लेनी पड़ी थी। पाकिस्तान की कायराना हरकतों को देखते हुए गांव के सरपंच सरकार से हर परिवार के लिए अलग बंकर बनाने की गुजारिश कर रहे हैं ताकि तुरंत सुरक्षा मिल सके। भारत और पाकिस्तान 10 मई को सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमत हो गए थे, यह फैसला चार दिनों तक चले ड्रोन और मिसाइल हमलों के बाद लिया गया। भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान के हर हमले को नाकाम कर दिया था।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि “अभी जो शेलिंग कम हुआ है तो अहिस्ता-अहिस्ता लोग वापस आ गए हैं। कहीं-कहीं दूर-दूर चले गए थे, अपने रिश्तेदारों के घर, कोई कहीं चला गया था, कोई कहीं चला गया। और बाकी हमारी फसल वगैरह देखो सब ऐसे ही पड़े हुए हैं। अभी हमने आकर काटना शुरू किया है, बाकी यहां पर बहुत मुश्किल है, बॉर्डर के ऊपर बहुत मुश्किल है, कुछ न कुछ व्यवस्था होनी चाहिए हमारे लिए।”

लोगों का कहना है कि “मुझे लगता है कि इन्होंने कई जंगें देखी हैं और क्रॉस बॉर्डर शेलिंग और टेरोरिज्म देखा है तो ये लोग यूज टू हैं। आप आज देख रहे हैं यहां नॉर्मल्सी है, लोग अपनी फसल काट भी रहे हैं, अपने जानवरों को चारा डाल रहे हैं परंतु दो-तीन दिन जो हालात बने, काफी शेलिंग हुई परंतु ये जो सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की बहादुरी है कि वो अपना क्षेत्र छोड़कर नहीं गए, हम कई लोगों से मिले भी, तो उनका कहना था कि हम जो जमीन, मातृभूमि छोड़ देंगे तो बॉर्डर पर जो सेना लड़ रही है वो किस लिए लड़ रही है।”

पंडित सुरेश कुमार ने बताया कि “हमारे इस क्षेत्र के लोगों को सरकार की तरफ से सुविधाएं दी गईं, गाड़ियां दी गईं कि आप लोग यहां से माइग्रेट होकर के कहीं सेफ कैंप में चले जाओ लेकिन लोगों का कहना था कि हम जिएंगे-मरेंगे यहीं पर। इसीलिए लोगों ने यहीं पर अपनी सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए पूरा शक्ति के साथ यही पर खड़े रहे और यहां पर जिसको जो-जो साधन मिला है, जहां-जहां छिपने की जगह मिली, लोगों ने पूरी शेलिंग के अंदर, बड़े हौसले के साथ, बहादुरी के साथ यहां पर डटे रहे और किसी प्रकार से यहां पर मनोबल खोया नहीं।”

अनीस कसाना, सरपंच “इस बार हमने देखा है कि बॉर्डर एरिया के जो नजदीक वाले गांव थे, वो कम टारगेट पर थे, उससे पीछे जो मैक्सिम सिविलियन पॉपुलेशन थी, जो ज्यादा डेंसली पॉपुलेटेड विलेज थे, वो ज्यादा स्ट्राइक पर हुए, जो आर्टिलरी फायर हुआ, इस्तेमाल किया गया है। बॉर्डर एरिया की यही डिमांड है कि जो नरेगा है, नरेगा में हर घर के साथ एक-एक, दो-दो अगर इंडिविजुअल बंकर दे दिया जाएगा, कुछ जो बेनिफिट है, जो हमारा शेयर है वो भी उसमें पड़ जाएगा, तो उससे जो होगा हर घरक को इंडिविजुअल बंकर बन जाएगा।”

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