Trump–Putin: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस शुक्रवार यानी 15 अगस्त को अलास्का में मुलाकात करने वाले हैं। इस बैठक के एजेंडे में यूक्रेन में चल रहा युद्ध सबसे ऊपर होगा। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के बिना पुतिन से मिलने के ट्रंप के फैसले ने यूक्रेन और यूरोप में चिंताएं बढ़ा दी हैं। माना जा रहा है कि इससे यूक्रेन पर ढील देने का दबाव पड़ सकता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि “जमीन की अदला-बदली होगी- इसमें से कुछ यूक्रेन के लिए अच्छा होगा, और कुछ दोनों पक्षों के लिए बुरा। इसमें अच्छाई और बुराई दोनों है। ये बहुत जटिल है क्योंकि युद्ध रेखाएं बहुत असमान हैं, और कुछ अदला-बदली होगी, जमीन में कुछ बदलाव होंगे, वह जिस शब्द का इस्तेमाल करेंगे वो है “बदलाव करें”—हम युद्ध रेखाएं बदलने जा रहे हैं।
रूस ने यूक्रेन के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है, जिसमें प्रमुख भू-भाग भी शामिल है, उन्होंने बहुमूल्य समुद्री तट की संपत्ति ले ली है। अगर आपके पास कोई झील, नदी या समुद्र तट है, तो वो हमेशा सबसे मूल्यवान संपत्ति होती है। यूक्रेन का लगभग एक हजार मील लंबा समुद्र तट था-ओडेसा के आसपास के एक छोटे से क्षेत्र को छोड़कर, वो अब खत्म हो गया है, तो मैं देखूंगा कि इसके क्या मापदंड हैं। मैं वहां से निकलूंगा बस “शुभकामनाएं” कह दूंगा, और बस बात खत्म हो जाएगी।”
खबरों के मुताबिक रूस 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप और 2022 में चार क्षेत्रों पर कब्जे को अंतरराष्ट्रीय कानूनी मान्यता देने की मांग कर रहा है। साथ ही वो ये गारंटी भी चाहता है कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा और वहां कोई पश्चिमी देश का सैनिक तैनात नहीं होगा।
अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ डॉ. अनुराधा चेनॉय ने बताया कि “यह एक पेचीदा मुद्दा है, एक बैठक में इसका समाधान होना मुश्किल है, खासकर इसलिए क्योंकि रूस ने बहुत खून-खराबा और मेहनत की है। और तीन सालों से उनकी तीन ही मांगें रही हैं… पहली, यूक्रेन एक तटस्थ देश होना चाहिए। उसे नाटो का हिस्सा नहीं होना चाहिए। क्या इस पर यूक्रेन की कोई सहमति है? और उन्होंने ऐसा नहीं कहा है। और यूरोप भी चाहता है कि वे नाटो का हिस्सा बनें। इसलिए इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता।
“दुर्भाग्य से, अलास्का में इस बैठक से कुछ खास नतीजा नहीं निकलने वाला। यह सबके लिए बहुत अच्छा होगा। लेकिन जब तक या कम से कम अगर वे बातचीत जारी रखते हैं, तो ये पहली बातचीत होगी और फिर उनके पास उचित वार्ता दल होंगे, जो क्षेत्रीय आदान-प्रदान समेत सभी मुद्दों को सुलझाएंगे, जो भी जरूरी हो, यूक्रेन की तटस्थता सुनिश्चित करेंगे और रूस के साथ एक स्थायी बातचीत भी करेंगे और रूस के साथ अच्छे संबंध भी रखेंगे। मुझे लगता है कि यह अपने आप में एक बहुत बड़ा कदम होगा। हालांकि यूक्रेन का मुद्दा पूरी तरह से सुलझने वाला नहीं है।”
दूसरा, यूक्रेन में जातीय अल्पसंख्यक, रूसी अल्पसंख्यक जिनके अधिकार छीन लिए गए हैं। उन्हें अपनी भाषा, अपने चर्च, अपनी संस्कृति पर अधिकार नहीं है। इसे बहाल करना होगा। तीसरा, डोनबास क्षेत्र, जो रूस और यूक्रेन की सीमा पर है, जिस पर रूस ने कब्जा कर लिया है, मुख्यतः ज़ाफ़रोज़िया, डोनेट्स्क, लुहान्स्क और डोनबास। और इससे पहले क्रीमिया, जिसे रूस छोड़ने को तैयार नहीं है।”
जेलेंस्की अपने रुख पर अडिग रहे हैं, उन्होंने ट्रंप द्वारा प्रस्तावित युद्ध विराम पर सहमति जताई है। साथ ही उन्होंने देश के किसी भी क्षेत्र को छोड़ने या नाटो सदस्यता के अपने लक्ष्य को छोड़ने से इनकार करने की बात भी कही है, यूरोपीय संघ के नेताओं ने ट्रंप से आग्रह किया है कि वे इस हफ्ते के आखिर में यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर पुतिन के साथ होने वाली बैठक में उनके सुरक्षा हितों की रक्षा करें।