President Murmu: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को स्लोवाकिया के नाइट्रा में ‘कॉन्स्टेंटाइन द फिलॉसफर’ विश्वविद्यालय द्वारा ‘‘सार्वजनिक सेवा में उनके विशिष्ट योगदान’’ के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति स्लोवाकिया और पुर्तगाल की अपनी चार दिवसीय यात्रा के अंतिम दिन सम्मान प्राप्त करने के लिए विश्वविद्यालय परिसर पहुंचीं। विश्वविद्यालय ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति मुर्मू को सार्वजनिक सेवा और शासन में उनके विशिष्ट योगदान, सामाजिक न्याय एवं समावेश की वकालत के लिए सम्मानित किया जा रहा है।
बयान में कहा गया कि मुर्मू ने शिक्षा, महिलाओं के सशक्तीकरण और सांस्कृतिक एवं भाषाई विविधता के संरक्षण और संवर्धन में योगदान दिया है। राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा कि वे भारत के 1.4 अरब लोगों की ओर से सम्मान स्वीकार कर रही हैं। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि दार्शनिक सेंट कॉन्स्टेंटाइन सिरिल के नाम वाले संस्थान से मानद उपाधि प्राप्त करना विशेष रूप से मायने रखता है क्योंकि भाषा, शिक्षा और दर्शन में उनका विशिष्ट योगदान था।
संथाली भाषा की सांस्कृतिक मान्यता सहित भारत की भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण के लिए काम करने वालीं मुर्मू ने कहा कि वे पहचान को आकार देने और ज्ञान को बढ़ावा देने में भाषा की शक्ति की सराहना करती हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा न केवल व्यक्तिगत सशक्तीकरण बल्कि राष्ट्रीय विकास का भी साधन है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, “मैं इस सम्मान के लिए रेक्टर और विश्वविद्यालय के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती हूं, जिसे मैं भारत के 1.4 बिलियन लोगों की ओर से स्वीकार करती हूं। ये एक ऐसा सम्मान है जो देश और सभ्यता को दिया गया है जो अनादि काल से शांति और शिक्षा का प्रतीक रहा है। दार्शनिक सेंट कॉन्स्टेंटाइन के नाम पर एक संस्थान से डिग्री प्राप्त करना सार्थक है। भाषा और दर्शन में उनका योगदान प्रेरणा देता है।
शिक्षा मेरे जीवन में सबसे अधिक परिवर्तनकारी शक्ति रही है, एक छोटे, वंचित, आदिवासी गांव से होने के कारण, मैं अपने समुदाय में कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली महिला थी। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक दूरदर्शी पहल है जिसे इस जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करने, नवाचार, अनुसंधान और वैश्विक सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किया गया है।”