Palestine: इज़रायल के कई सहयोगी देशों ने अचानक रुख बदलते हुए फिलिस्तीन को औपचारिक मान्यता दे दी है। यह पश्चिमी देशों की विदेश नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
ब्रिटेन ने इस पहल की अगुवाई की। इसके साथ ही कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने रविवार को बयान जारी कर फिलिस्तीन को मान्यता दी। बताया जा रहा है कि बेल्जियम, फ्रांस, लग्ज़मबर्ग, माल्टा, न्यूज़ीलैंड और लिकटेंस्टीन भी सोमवार को संयुक्त राष्ट्र की विशेष बैठक में यह घोषणा कर सकते हैं।
फिलिस्तीन के लिए यह पल ऐतिहासिक है। दशकों से चली आ रही उनकी राज्य की मान्यता की मांग को आखिरकार पश्चिम का समर्थन मिल रहा है। हालांकि, भारत ने फिलिस्तीन को बहुत पहले ही मान्यता दे दी थी।
फिलिस्तीन की स्थिति
फिलिस्तीन को दुनिया के 193 में से 145 से अधिक देश मान्यता दे चुके हैं। इसके बावजूद यह राज्य अधूरा है— न तय सीमा, न राजधानी और न ही अपनी सेना। गाज़ा पूरी तरह इज़रायल के कब्जे में है और वहां भीषण युद्ध जारी है। अब तक 65 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और 90 प्रतिशत आबादी बेघर हो गई है।
इज़रायल और अमेरिका का विरोध
इस मान्यता को लेकर इज़रायल और अमेरिका भड़के हुए हैं। इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे “बेतुका” बताया और कहा कि यह इज़रायल के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है। वहीं अमेरिका ने इसे “सिर्फ दिखावा” करार दिया।
भारत का रुख
भारत लंबे समय से फिलिस्तीन का समर्थक रहा है। 1947 में विभाजन के खिलाफ वोट किया, 1974 में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को मान्यता दी और 1988 में फिलिस्तीन को औपचारिक मान्यता देने वाले पहले देशों में शामिल रहा।
हालांकि, 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले के बाद भारत ने साफ कहा कि वह आतंकवाद के खिलाफ इज़रायल के साथ खड़ा है। इसके बावजूद भारत ने नागरिकों और पत्रकारों की हत्या की निंदा की और हमेशा बातचीत से समाधान का समर्थन किया। हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में दो-राष्ट्र समाधान (Two-State Solution) के पक्ष में वोट भी दिया।
पश्चिमी देश अब यह मान रहे हैं कि मध्य पूर्व में शांति का रास्ता तभी निकल सकता है जब इज़रायल के साथ-साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीन भी मौजूद हो। यह विचार भारत ने कभी छोड़ा ही नहीं था।