European Union: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूरोपीय संघ से पाकिस्तान के साथ संघर्ष के मुद्दे को भारत बनाम ‘‘आतंकिस्तान’’ के रूप में देखने का आह्वान किया।
उन्होंने आतंकवाद पर भारत के कतई बर्दाश्त नहीं करने के रुख को भी रेखांकित किया, ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के विदेश मामलों और सुरक्षा नीति के उच्च प्रतिनिधि काजा कालास के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान जयशंकर से पहलगाम आतंकवादी हमले के मद्देनजर भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बारे में पूछ जाने पर उन्होंने यह टिप्पणी की।
जयशंकर ने कहा कि ‘‘यह दो देशों के बीच का संघर्ष नहीं है, यह वास्तव में आतंकवाद के खतरे के प्रति प्रतिक्रिया है। इसलिए, मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप इसे भारत-पाकिस्तान के रूप में न सोचें, बल्कि ‘भारत-आतंकिस्तान’ के रूप में सोचें, तब आप इसे समझ पाएंगे।’’
जयशंकर ने जोर देकर कहा कि भारत का दृढ़ विश्वास है कि आतंकवाद को किसी भी रूप में कतई बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘‘उस संदर्भ में यह भी जरूरी है कि हम कभी भी परमाणु धमकी के आगे न झुकें। ये वैश्विक समुदाय के लिए एक साझा और परस्पर चुनौती है तथा ये जरूरी है कि इस मामले पर मजबूत अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समझ हो।’’
जयशंकर के साथ भारत और यूरोपीय संघ के बीच पहली रणनीतिक वार्ता में कालास भी शामिल हुए, जिसके दौरान उन्होंने रक्षा, समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद निरोधक, साइबर एवं एआई, अंतरिक्ष एवं रक्षा उद्योग सहयोग में सहयोग को गहरा करने पर सार्थक चर्चा की।
जयशंकर ने कहा कि उनकी ‘‘बहुत खुली और सार्थक बैठक’’ हुई जिसमें रक्षा एवं सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा, साइबर और अंतरिक्ष के क्षेत्रों को शामिल किया गया।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि “मुझे लगता है कि आज हमारी बैठक बहुत ही खुली और सफल रही। ये अब भी जारी है। इसके बाद हम अपनी चर्चाओं पर वापस लौटेंगे। हमने रक्षा और सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा, साइबर, अंतरिक्ष पर चर्चा की है, जैसा कि आपने उच्च प्रतिनिधि से सुना है।”
“मेरी बैठक से पहले आज सुबह राष्ट्रपति वॉन डेर लेयेन से मुलाकात हुई। मैं अपने प्रवास के दौरान आयुक्तों सेफसेविक, सेकेला और कोबेलियस से भी मिलूंगा और मुझे उम्मीद है कि इस यात्रा के दौरान मैं राष्ट्रपति मेट्सोला और यूरोपीय संसद के सदस्यों से भी बातचीत करूंगा। अब, ब्रुसेल्स की मेरी यात्रा यूरोपीय संघ के आयुक्तों के कॉलेज की भारत यात्रा के तीन महीने बाद हो रही है। उस समय भी, ये साफ था कि विश्व व्यवस्था गहन परिवर्तन के बीच थी।”