America: अमेरिका और चीन अब पूरी तरह से टैरिफ युद्ध में उलझ चुके हैं, वाशिंगटन ने चीनी वस्तुओं पर नए सिरे से शुल्क लगाया है, जिससे नौ अप्रैल तक कुल शुल्क 104 प्रतिशत तक पहुंच गया है। जवाबी कार्रवाई में बीजिंग ने अमेरिकी आयात पर 84 फीसदी टैरिफ लगाया है। ये बड़ी वृद्धि पहले की गई कार्रवाई के बाद हुई है, जिसमें फेंटेनाइल तस्करी में चीन की कथित भूमिका से जुड़ा 34 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ और 20 फीसदी शुल्क शामिल है। इसके बाद चीन ने पहले दौर के जवाबी उपाय किए थे। लेकिन इस बार, बीजिंग ने अंत तक लड़ने का अपना रुख साफ कर दिया।”
आकाश जिंदल, अर्थशास्त्री “अब सबसे पहले आप चीन के निर्यात के बारे में बात कर रहे हैं। चीन के निर्यात पर 104 प्रतिशत टैरिफ से उसे बहुत नुकसान होगा। देखिए, अगर कोई अमेरिकी नागरिक 10 डॉलर में कुछ खरीद रहा है, तो क्या आप उससे ये उम्मीद कर सकते हैं कि वो रातों-रात वही चीज़ 20 डॉलर में खरीदने लगेगा? तो क्या होगा? चीनी निर्यात पर असर पड़ेगा, अगर एक हफ्ते के अंदर कीमतें 100 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ जाती हैं, तो उपभोक्ता सिर्फ और सिर्फ जरूरत की चीजें ही खरीदेगा। तो इसका निश्चित रूप से चीनी निर्यात पर बहुत बड़ा असर होगा।”
चीन ने सभी अमेरिकी आयातों पर 34 प्रतिशत टैरिफ लगाकर जवाबी हमला किया। साथ ही दुर्लभ पृथ्वी खनिजों पर निर्यात नियंत्रण पेश किया और ट्रंप के तथाकथित “मुक्ति दिवस” टैरिफ के जवाब में कई और उपाय किए। जवाब में ट्रंप ने चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया। साथ ही ये ऐलान किया कि बीजिंग के साथ सारी बातचीत आधिकारिक रूप से खत्म हो गई है।
आधिकारिक डेटा से पता चलता है कि पिछले साल चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 295.4 बिलियन डॉलर था। विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अगर बीजिंग आगे बढ़ता है, तो ट्रंप के उपाय अमेरिका में होने वाले चीन के निर्यात को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं, जो आसियान और यूरोपीय संघ के बाद उसका तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
चीनी वाणिज्य मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका टैरिफ बढ़ाना जारी रखता है तो चीन अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए जवाबी कार्रवाई करेगा। इस जवाबी टैरिफ युद्ध का असर दुनिया भर में पहले ही महसूस किया जा रहा है, क्योंकि सरकारें दो आर्थिक महाशक्तियों के बीच टकराव से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बचाने के लिए जूझ रही हैं।
चीन ने कूटनैतिक कदम उठाते हुए अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ मिलाजुला रुख अपनाने के लिए भारत से संपर्क किया है। लेकिन कनाडा और चीन के विपरीत, नई दिल्ली ने ट्रंप प्रशासन के साथ सीधे टकराव से दूर रहने का विकल्प चुना है। आकाश जिंदल, अर्थशास्त्री “अभी भारत के खिलाफ टैरिफ, चीन के खिलाफ टैरिफ की तुलना में बहुत कम हैं। इसलिए बहुत सारे विनिर्माण भारत में शिफ्ट हो सकते हैं, क्योंकि भारत को टैरिफ आर्बिट्रेज मिलेगा। दूसरे, भारत को इस स्थिति से भी फायदा होगा, क्योंकि जो पैसा शुरू में भारतीय शेयर बाजारों के लिए था, वैश्विक धन, वैश्विक पोर्टफोलियो धन, वो चीन जाने लगा। अब जब चीन इन सभी समस्याओं और टैरिफ युद्ध में उलझा हुआ है, तो वैश्विक धन चीन नहीं जाएगा क्योंकि वैश्विक धन मुख्य रूप से अमेरिकी धन है। इसलिए वे भारत आना पसंद करेंगे, जो एक मित्र देश है, जो व्यापार युद्ध में शामिल नहीं है, जो बातचीत कर रहा है।”
चीनी निर्यातक व्यापार युद्ध के असर को कम करने के लिए दो प्रमुख रणनीतियां अपना रहे हैं। पहला अपने उत्पादन के कुछ हिस्सों को विदेशों में शिफ्ट करना और दूसरा गैर-अमेरिकी बाजारों में निर्यात बढ़ाना। ग्लोबल सप्लाई चेन के अधर में लटकने के साथ, बीजिंग पर निर्णायक रूप से काम करने का दबाव बढ़ रहा है, क्योंकि राष्ट्रपति शी जिनपिंग दक्षिण पूर्व एशिया के अहम दौरे की शुरुआत कर रहे हैं।