Dussehra: कांगड़ा में नहीं जलाया जाता रावण, यहां लोग नहीं मनाते हैं दशहरा

Dussehra:  हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बैजनाथ में दशहरे पर रावण को जलाने का रिवाज नहीं है क्योंकि इस शहर के लोग दशानन को खलनायक नहीं मानते हैं, यही वजह है कि कि यहां दशहरा नहीं मनाया जाता।

बैजनाथ के लोग लंका नरेश को उनकी तपस्या और भक्ति के लिए याद करते हैं, उनका मानना ​​है कि रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यहीं पर तपस्या की थी।

यहां एक मशहूर किस्सा है कि बैजनाथ में दशहरे पर जब कभी रावण के पुतले जलाने की कोशिश की गई तो उस प्रयास में कई लोगों की जान चली गई थी।

नागर शैली में बने बैजनाथ मंदिर में शिवलिंग इस जगह से जुड़ी पौराणिक कथा की याद दिलाता है, लेकिन ये सुंदर शहर देश के उन दुर्लभ जगहों में से एक है, जहां लोग रावण के सम्मान में दशहरा नहीं मनाते हैं।

बैजनाथ मंदिर के पुजारी सुरेंद्र आचार्य ने बताया कि “रावण की य तपोस्थली भूमि रही है क्योंकि जो तपस्वी है उसका ऐसा तो कर ही नहीं सकते, दहन कर ही नहीं सकते। तो आज से 100 साल की.. बताती है कि तीन आदमियों ने संकल्प किया था।

एक ने किया एक वर्ष तो उसकी मृत्यु हो गई, बोला कुछ नहीं होता ऐसे ही लोगों ने किवदंती कथा बना रखी है, दूसरी बार दूसरे ने किया उसकी मृत्यु हो गई। तीसरी बार तीसरे ने किया उसकी मृत्यु हो गई। ऐसे तीन बार तीन लोगों ने संकल्प किया तीनों की मृत्यु हो गई। उसके बाद किसी ने उसका जोखिम नहीं उठाया”

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