Haryana: हरियाणा में करनाल के भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान में गेहूं की दो नई किस्में विकसित की गई हैं। इनका नाम डीबीडब्ल्यू 386 और डीबीडब्ल्यू 443 रखा गया है। इन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों के वातावरण के अनुरूप विकसित किया गया है। उम्मीद है कि इन किस्मों से प्रति हेक्टेयर 50 क्विंटल गेहूं की उपज होगी, दोनों किस्में अगले कुछ सालों में किसानों के लिए उपलब्ध हो जाएंगी।
भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. रत्ना तिवारी ने बताया कि “भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान की गेहूं की किस्में और एक जौ की किस्मों का अनुमोदन हुआ है और उसमें जो प्रमुख है हमारी डीबीडबल्यू 386 है वो पूर्वोत्तर भारत के लिए की गई है। उसके अलावा जो डीबीडब्ल्यू 443 है वो प्राय:द्वीपीय क्षेत्र के लिए है। हाई क्वालिटी वैरायटी के तौर पर।”
संस्थान ने बताया कि नई किस्मों में ना सिर्फ खास गुण हैं, बल्कि वे किसानों के लिए भी फायदेमंद हैं। भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. रत्ना तिवारी ने बताया कि “किसानों को एक तो सबसे पहला फायदा ये है कि मौसम अनुकूल ये जलवायु अनुकूल प्रजातियां हैं तो इसमें नुकसान कम होता है।
दूसरा ये है कि इनमें लगभग सारी प्रजातियों में आजकल प्रोटीन और बाकी के जैसे तत्व हैं जैसे आयरन है उनकी मात्रा संतोषजनक मात्रा होती है। बीमारियां नहीं लगती है ज्यादातर, क्योंकि हम लोग बहुत टेस्ट करने के बाद ही इसको भेजते हैं। तो गेहूं के प्रोग्राम की ये बड़ी खासियत है कि बीमारियों के प्रति जो रोगरोधी होता है वही प्रजातियां अनुमोदित हों।”