Salim Khan: सलीम खान ने लिखने के लिए मुझे हिम्मत दी- जावेद अख्तर

Salim Khan: मशहूर गीतकार और स्क्रीनराइटर जावेद अख्तर अपने पूर्व जोड़ीदार सलीम खान की तारीफ करते नहीं थक रहे। उनका कहना है कि सलीम खान ने हमेशा ही लिखने के लिए उनका हौसला बढ़ाया। लंबे अरसे बाद एक डॉक्यूमेंट्री के लिए सलीम-जावेद की जोड़ी साथ आई है। दोनों दिग्गज बताते हैं कि कैसे 1960 के दशक में एक फिल्म के सेट पर हुई मुलाकात ने स्क्रीनराइटरों की कामयाब पार्टनरशिप की कामयाब जोड़ी की शक्ल ले ली, जो अब इतिहास बन चुकी है।

जावेद अख्तर ने कहा कि उनकी मुलाकात सलीम खान से तब हुई थी जब सलीम खान 1966 की फिल्म ”सरहदी लुटेरा” में एक्टिंग कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दोनों ने कभी ये तय नहीं किया कि वे अब साथ काम करना शुरू करेंगे, ये बस बढ़ता गया और हो गया। जावेद अख्तर ने बताया कि उन्हें जो पहली नौकरी मिली, उसके लिए उन्हें 50 रुपये का भुगतान किया गया और फिर ‘सरहदी लुटेरा’ के लिए उनकी फीस 100 रुपये हो गई, यह उनके करियर की सबसे खास फिल्मों में से एक साबित हुई क्योंकि यहीं पर उनकी मुलाकात सलीम साहब से हुई।

उनके मुताबिक सलीम खान उस फिल्म में रोमांटिक लीड थे और वे उस किरदार के लिए डायलॉग लिख रहे थे, अख्तर ने कहा कि वे सलीम खान ही थे, जिसने उन्हें फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखने के लिए प्रेरित
किया। जंजीर”, “शोले” और “दीवार” जैसी फिल्मों के जरिए 1970 के दशक में भारतीय सिनेमा में क्रांति लाने वाले स्क्रिप्टराइटरों की दिग्गज जोड़ी सलीम-जावेद लंबे अरसे के बाद एक बार फिर से किसी फिल्म की पटकथा लिखेंगे। गीतकार जावेद अख्तर ने मंगलवार को इसका ऐलान किया। लोकप्रिय गीतकार अख्तर ने डिजिटल इंटरटेनमेंट प्लेटफॉर्म प्राइम वीडियो पर प्रसारित होने वाली डॉक्यूमेंट्री-सीरीज ‘एंग्री यंग मेन’ के ट्रेलर लॉन्च के दौरान यह जानकारी दी। बाइस हिंदी फिल्मों और दो कन्नड़ फिल्मों में साथ में काम करने के बाद, दोनों ने 1982 में अपनी जोड़ी खत्म करने का फैसला लिया।

स्क्रीनराइटर जावेद अख्तर ने कहा कि “वो मेरी जिंदगी की शायद सबसे अहम फिल्म है सरहदी लुटेरा क्योंकि यहीं पर मेरी मुलाकात सलीम साहब से हुई। सलीम साहब पिक्चर में रोमांटिक लीड कर रहे थे और मैं डायलॉग लिखता था और मुझे इतना परेशान करते थे डायरेक्टर साहब, प्रोड्यूसर साहब की मैंने तय कर लिया था कि मैं इसके बाद नहीं लिखूंगा। मगर मुझे कॉन्स्टेंटली जो हिम्मत दी और जो एप्रिसिएशन दिया, वो सलीम साहब ने दिया। आप अगर इस पिक्चर में ऐसे डायलॉग लिख सकते हैं तो आप सोचिए कि अगर कोई ठीक पिक्चर होगी तो आप क्या करेंगे, आप राइटर बनिए। तो खैर बाद खत्म हो गई। उसके बाद मैं बांद्रा आ गया, एक दोस्त वहां, किराया वो देता था, मैं रहता था, तो सलीम साहब का घर पास में था, तो सलीम साहब के घर जाने लगा। सारी मोहब्बत के साथ में खाना पक्का हो गया था, तो फिर हम लोग बैठते थे, कहानियां-वहानियां सोचते थे। एक दिन हम लोग बैठे थे, तो वही सागर साहब, जिन्होंने सरहदी लुटेरा बनाई थी, जिन्होंने हमें एंट्रोड्यूस कराया, वो आ गए। उन्होंने कहा कि एक शॉर्ट स्टोरी है और तुम दोनों अगर उसका स्क्रीन-प्ले बना तो, हमने कहा ठीक है, कितने पैसे देंगे? उन्होंने कहा 5,000 तो मेरा एक हार्ट बीट मिस हो गया, हमने कहा ठीक है, तो हमने 14-15 दिन में वो स्क्रीन-प्ले बना कर उन्हें दे दिया, हमारा नाम नहीं था पिक्चर में, लेकिन वहां एक सुधीर भाई थे, जो आज भी हैं शायद आपके टच में, तो सुधीर भाई को तो मालूम था कि हमारा काम है, तो उन्होंने कहा कि सिप्पी फिल्म्स चले जाओ। हमने सोचा सिप्पी फिल्म्स इतनी बड़ी कंपनी है, हमें कहां काम देंगे, लेकिन एक दिन दोपहर में कुछ करने को नहीं था तो मैं चला ही गया। वहां बात-वात की तो उन्होंने कहा कि आप दोनों आ जाइए, फिर हम दोनों गए और हमें वहां काम मिल गया।”

 

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