Manoj Kumar: अभिनेता मनोज कुमार फिल्म प्रेमियों की पीढ़ियों के लिए हमेशा ‘भारत कुमार’ के रूप में उनके दिलों में जिंदा रहेंगे। एक अभिनेता-फिल्म निर्माता के तौर पर मनोज कुमार ने अपनी देशभक्ति को उस समय फिल्मी पर्दे पर उतारा जब एक नवजात भारत अपनी पहचान बना रहा था और अपने सपनों और संभावनाओं को साकार करना शुरू कर रहा था।
मनोज कुमार ने देश के करोड़ों लोगों की भावनाओं को फिल्मों के जरिए सिल्वर स्क्रीन पर उतारा। उन्होंने 1960 और 1970 के दशक के मध्य में “उपकार”, “पूरब और पश्चिम” और “रोटी, कपड़ा और मकान” जैसी फिल्मों में अपने विभाजन के दर्द को पेश करते हुए एक उभरते भारत की कहानी
बताई। हर फिल्म ने अपनी अलग पहचान बनाई, यह सभी फिल्में ब्लॉकबस्टर थीं और दर्शक इन फिल्मों को देखने के लिए बेताब दिखते थे।
मनोज कुमार का सुबह मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे 87 साल के थे और लंबे वक्त से सेहत से जुड़ी कई समस्याओं से जूझ रहे थे और लंबे वक्त से गुमनामी में थे। कई फिल्मों में उनका नाम भारत था। ये एक ऐसा नाम था जो एक फिल्म निर्माता और एक अभिनेता के रूप में उनकी पहचान में घुलमिल गया। उन्हें लोग ‘भारत कुमार’ के नाम से जानते थे। देशभक्ति फिल्मों में अपने किरदारों से वाहवाही बटोरने वाले मनोज कुमार कई सुपरहिट रोमांटिक फिल्मों में भी नायक रहे। “हिमालय की गोद में”, “दो बदन” और “पत्थर के सनम” जैसी फिल्मों में उनके काम को काफी सराहा गया।
उन्हें पहली सफलता 1962 में माला सिन्हा के साथ फिल्म “हरियाली और रास्ता” में मिली। मनोज कुमारह फिल्में बहुत हिट रहीं और उनके गाने भी लोगों को काफी पसंद आए। “तौबा ये मतवाली चाल”, “महबूब मेरे महबूब”, “चाद सी मेहबूबा होगी मेरी”, “एक प्यार का नगमा है” और “पत्थर के सनम” जैसे गाने आज भी लोगों को याद हैं। हालांकि मनोज कुमार की विरासत हमेशा उनके पुराने दौर की देशभक्ति से जुड़ी रहेगी। “पूरब और पश्चिम” जैसी उनकी कुछ फिल्में, रूढ़िवादी और साधारण भारत और पश्चिमी दुनिया के विचार के साथ देखी जा सकती हैं।
उन्होंने 1967 में “उपकार” से निर्देशन की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने मुख्य भूमिका भी निभाई। ये तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के लोकप्रिय नारे ‘जय जवान जय किसान’ से प्रेरित थी। ये फिल्म ग्रामीण बनाम शहरी जीवन और अपने देश के लिए एक किसान से सैनिक बने फिल्म के नायक की वीरता को दिखाती है। इस सोच ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया।
मनोज कुमार ने इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता, फिल्म में अभिनेता प्राण दयालु और बुद्धिमान मलंग चाचा की भूमिका निभाते दिखे जो इससे पहले खलनायक के किरदार में नजर आते थे। अभिनेता प्राण के करियर के लिए भी ये फिल्म अहम साबित हुई। फिल्म “उपकार” से दो साल पहले “शहीद” आई थी, जो स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की बायोपिक थी जिसमें कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई थी। शायद, फिल्म की सफलता ने उनके देशभक्ति के जोश को और भी बढ़ा दिया।
उनकी सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक है 1974 में आई भव्य मल्टी-स्टारर फिल्म “रोटी कपड़ा और मकान”। उन्होंने न सिर्फ इस फिल्म का निर्माण, निर्देशन किया बल्कि इसमें अहम किरदार भी निभाया। जीनत अमान, अमिताभ बच्चन और शशि कपूर जैसे कलाकारों से सजी इस फिल्म में बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के विषयों के साथ-साथ एक आदर्श भारत के विचार को दिखाया। उनकी सभी फिल्मों के गाने समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। किसी देशभक्ति गीत के बारे में सोचें और संभावना है कि आपको मनोज कुमार का कोई गीत याद आ जाएगा जिसके बोल और धुनें दिल को छू लेने वाली हों। ‘उपकार’ से ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’, ‘पूरब और पश्चिम’ से ‘भारत का रहने वाला हूं’ और ‘रोटी कपड़ा…’ से ‘महंगाई मार गई’ जैसे गाने सुपरहिट रहे।
उनका जन्म 1937 में अब पाकिस्तान के एबटाबाद में हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी के रूप में हुआ था। दस साल बाद, जब उप-महाद्वीप का विभाजन हुआ, तो परिवार अपना घर छोड़कर दिल्ली चला आया। वे साल बहुत दर्दनाक थे। उन्होंने अपने दो महीने के भाई को खो दिया, जिसकी शहर में भड़के दंगों के कारण अस्पताल में ठीक से देखभाल नहीं हो सकी।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जहां उन्होंने थिएटर में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अपनी बेहतरीन कद-काठी और हाव-भाव के लिए मशहूर इस अभिनेता ने हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाने के लिए मुंबई जाने का फैसला किया।
कई साल बाद हरिकृष्ण, मनोज कुमार बन गए
मनोज कुमार ने 2021 में पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “मुझे वो समय याद है जब मैं 1949 में रिलीज हुई ‘शबनम’ में दिलीप कुमार साहब को देखने गया था। उनकी वजह से ही मैं सिनेमा का प्रशंसक बना। मुझे फिल्म में उनके किरदार से प्यार हो गया जिसका नाम मनोज था… मैंने तुरंत फैसला किया कि अगर मैं कभी भी अभिनेता बनूंगा तो अपना नाम मनोज कुमार ही रखूंगा।” दिलीप कुमार और उनकी पत्नी सायरा बानो आजीवन मनोज कुमार के दोस्त बन गए।
उन्होंने इंटरव्यू में कहा कि वे बहुत खुश हुए थे जब दिलीप कुमार ने 1981 की ऐतिहासिक फिल्म ‘क्रांति’ में काम करने के लिए सहमति जताई थी। उनके मुताबिक ये एक बड़ी हिट फिल्म थी और उनके करियर की आखिरी बड़ी कामयाब फिल्म भी थी। हालांकि कुमार को पहली बार 1957 में “फैशन” में स्क्रीन पर देखा गया था, लेकिन उन्हें तीन साल बाद 1960 में “कांच की गुड़िया” में देखा गया। उनकी आखिरी फिल्म 1995 में “मैदान-ए-जंग” थी।
इसके बाद उन्होंने अभिनय छोड़ दिया। हालांकि 1999 में अपने बेटे कुणाल गोस्वामी को लॉन्च करने के लिए निर्देशक के तौर पर वापस लौटे। फिल्म “जय हिंद” भी देशभक्ति पर आधारित थी। हालांकि, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। अपने करियर के तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद, देशभक्ति से भरपूर फिल्में बनाने वाले निर्माता के रूप में मनोज कुमार की छवि बनी रही। 1977 में आपातकाल के दौरान, इंदिरा गांधी सरकार ने मनोज कुमार से एक फिल्म बनाने के लिए संपर्क किया था। लहरें के साथ एक पुराने इंटरव्यू के अनुसार, कुमार ने लेखक जोड़ी सलीम-जावेद को चुना था, लेकिन ये प्रोजेक्ट नहीं बन पाया क्योंकि वे स्क्रिप्ट में सुझाए गए बदलाव करने के लिए तैयार नहीं थे।
कुमार ने “शोर” और “दस नंबरी” फिल्मों के लिए हुए नुकसान के लिए सरकार को अदालत में घसीटा था, जो उस समय की नीति के अनुसार सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने के दो हफ्ते बाद ही दूरदर्शन पर दिखा दी गई थीं। उन्होंने 2007 में शाहरुख खान अभिनीत फिल्म “ओम शांति ओम” में उनके चेहरे पर हथेली रखने वाले हाव-भाव की नकल करने के लिए निर्माताओं को अदालत में घसीटने की धमकी दी। निर्देशक फराह खान और शाहरुख दोनों ने उनसे माफी मांगी।
मनोज कुमार एक बहुत सम्मानित अभिनेता थे। उन्हें 2015 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। उस वक्त वे व्हीलचेयर से ही चल-फिर सकते थे और और सम्मान लेने के लिए खड़े भी नहीं हो पाए थे। उन्हें 1992 में पद्म श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। फिल्मों में जब भी देशभक्ति की बात की जाएगी तो मनोज कुमार का नाम सबसे पहले जेहन में आएगा। वे हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे और उनकी ये विरासत हमेशा कायम रहेगी।