मिनाक्षी शाह
पर्यावरण, हमारे
चारों ओर का वातावरण है जिसमे स्थलमण्डल, जलमण्डल
एवं वायुमण्डल का योग होता है , पृथ्वी
पर जीवन इन तीनों मण्डलों के अन्तः सम्बन्ध एवं प्राकृतिक सन्तुलन से ही हुआ है।
पर्यावरण का भौतिक भाग जो मानव नियन्त्रण से परे है, जो प्रकृति
कहलाती है।
प्रकृति
ने मानव की समस्त मूलभूत आवश्यकताएं सुख एवं सम्पदा के सारे संसाधन अपनी नैतिक
जिम्मेदारी समझते हुए प्रदान किए हैं। प्रकृति ने वह मृदा हमे दी जिसमें
हम अन्न पैदा करते हैं, पानी जिसे हम पीते हैं, एवं हवा
जिसमें हम सांस लेते हैं , जिनके अभाव में पृथ्वी पर जीवन सम्भव
नहीं है,जो हमें बिना किसी
सीमा एवं शुल्क के उपलब्ध कराया है। तमाम वैज्ञानिक विकास के बावजूद भी हम इन
मूलभूत आवश्यकताओं के निर्माण में अक्षम है।
वैसे तो
मानव भी पर्यावरण का ही एक अंग है, और इसका
अस्तित्व प्रकृति के ऊपर ही निर्भर है। इसीलिए मानव को प्रकृति का सम्मान करना
जरुरी है।
पर प्रकृति
के अनियन्त्रित, असंतुलित
एवं अनियोजित विकास से मानव अपने ही
विनाश का मार्ग बना रहा है किन्तु आज विश्व के तमाम देश ,चाहे वो विकासशील
हों या विकसित, विगत वर्षों में आए हुए आपदाओं के बाद भली-भांति
जान गये हैं कि प्रकृति कितनी बड़ी है और मानव कितना बौना। विकास की दौड़ में मानव ने
पर्यावण को काफी नुक्सान पहुंचाया है और अब वह
प्रकृति की कीमत पर विकास कर रहा है।, प्राकृति
के नियमों की अनदेखी करते हुए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक
दोहन किया जा रहा है । जिसके
परिणामस्वरूप वरदान स्वरूप जीवन दायिनी प्रकृति अभिशाप बनती हुई दिखाई दे रही है।
मानवीय गतिविधियों ने विगत वर्षों में प्रकृति को असंतुलित किया है जो आपदाओं का
कारण बन रहा है।