New Delhi: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के मुद्दे पर सुनवाई को केवल सर्दियों के महीनों में ‘रस्मी’ सुनवाई के तौर पर नहीं देखा जा सकता और इस समस्या के अल्पकालिक और दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिए महीने में दो बार सुनवाई की जाएगी। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सामान्य विमर्श में एक अहम बदलाव करते हुए कहा, ‘‘पराली जलाने का मुद्दा अनावश्यक रूप से राजनीतिक मुद्दा या अहम का मुद्दा नहीं बनना चाहिए।’’
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने दिल्ली- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण के लिए पराली जलाने को मुख्य कारण बताए जाने पर सवाल उठाते हुए पूछा, ‘‘कोविड के दौरान पराली जलाई जा रही थी, लेकिन फिर भी लोगों को साफ नीला आसमान क्यों दिखाई दे रहा था? इससे ज्ञात होता है कि इसके पीछे अन्य कारक भी हैं।’’
न्यायमूर्ति सूर्यकांत के स्वयं का पैतृक निवास हरियाणा के हिसार में स्थित है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “हम पराली जलाने पर टिप्पणी नहीं करना चाहते, क्योंकि इसका बोझ उन लोगों (किसानों) पर डालना गलत है, जिनका इस न्यायालय में बहुत कम प्रतिनिधित्व है।” उन्होंने कहा, “पराली जलाने का मुद्दा अनावश्यक रूप से राजनीतिक या अहम का मुद्दा नहीं बनना चाहिए।” प्रधान न्यायाधीश ने तात्कालिक और दीर्घकालिक उपायों में स्पष्टता की मांग करते हुए केंद्र से वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और अन्य के विशिष्ट कदमों को बताने को कहा ताकि वह जान सके कि वायु प्रदूषण के खतरे से निपटने के लिये क्या अल्पकालिक और दीर्घकालिक कदम उठाए गए।
शीर्ष अदालत ने इसी के साथ मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 दिसंबर की तारीख तय की। प्रधान न्यायाधीश ने सुनवाई की शुरुआत में कहा, ‘‘दिल्ली प्रदूषण मामले को रस्मी तौर पर अक्टूबर महीने में सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता और इसकी जगह इसे महीने में कम से कम दो बार नियमित सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।’’
उन्होंने सोमवार के वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का उल्लेख करते हुए कहा,‘‘मेरे भाई (न्यायमूर्ति बागची) ने मुझे बताया कि चूंकि यह मामला आज सूचीबद्ध है और सुना गया है…एक्यूआई के स्तर में सुधार हुआ है।’’ केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों का उल्लेख किया और कहा कि ‘‘पराली जलाना, वाहनों से होने वाला प्रदूषण, निर्माण कार्य से उत्पन्न धूल, सड़क की धूल और जैविक अपशिष्ट जलाना वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में शामिल हैं।’’
उन्होंने कहा, “मैं प्रत्येक स्तर पर उठाए गए कदमों की विस्तृत सूची दे सकती हूं।” प्रधान न्यायाधीश ने योगदान करने वाले अन्य कारकों की ओर इशारा करते हुए कहा कि कोविड-19 के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान, पराली जलाना सामान्य बात थी, लेकिन फिर भी नागरिकों को नीला आसमान और तारे दिखाई दे रहे थे। पीठ ने कहा, ‘‘क्यों? इस पर विचार करने की आवश्यकता है और अन्य कारकों पर भी। हम अन्य कारकों को नियंत्रित करने के लिए किए गए उपायों पर एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट चाहते हैं।’’
शीर्ष अदालत ने कहा,‘‘ हम दीर्घकालिक और अल्पकालिक योजनाएं देखना चाहते हैं।’’ इसके बाद प्रधान न्यायाधीश ने देश में अनियोजित शहरी विकास और बढ़ती आबादी का उल्लेख किया और कहा, “देश का कोई भी शहर इतनी बड़ी आबादी को समायोजित करने के लिए या यह सोचकर विकसित नहीं किया गया था कि प्रत्येक घर में कई कारें होंगी। आइए देखें कि हमें कौन से उपाय सुझाए गए हैं और इन उपायों को कैसे लागू किया जाता है या ये केवल कागजों पर ही हैं।”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि शहरों के विकास का जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पीठ ने कहा कि इस समस्या में सबसे अधिक योगदान देने वाले कारक का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक विश्लेषण होना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते। समाधान विशेषज्ञों से ही आना चाहिए। न्यायालयों के पास समाधान हो भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन हम सभी हितधारकों को विचार-विमर्श के लिए एक मंच प्रदान कर सकते हैं।’’ मामले में न्यायमित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि वाहनों से होने वाला प्रदूषण और धूल दिल्ली के खराब वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के लिए सबसे बड़ा कारण हैं। उन्होंने उन खबरों पर भी चिंता व्यक्त की जिनमें कहा गया था कि कई वायु गुणवत्ता निगरानी उपकरण ठीक से काम नहीं कर रहे हैं।
अधिवक्ता ने दिल्ली की सड़कों के दोनों ओर खड़ी कारों की पुरानी समस्या को भी रेखांकित किया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यद्यपि मेट्रो परियोजनाएं परिवर्तनकारी होंगी, फिर भी अल्पकालिक उपायों की तत्काल आवश्यकता है। शीर्ष अदालत ने 27 नवंबर को दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में बिगड़ती वायु गुणवत्ता से संबंधित याचिका पर तीन दिसंबर को सुनवाई करने पर सहमति जताते हुए कहा था कि इस मुद्दे पर नियमित आधार पर निगरानी रखने की जरूरत है।