New Delhi: उच्चतम न्यायालय ने प्राधिकारियों से कहा कि वे कथित तौर पर वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी यहां रह रहे एक परिवार के छह सदस्यों के खिलाफ पाकिस्तान वापस भेजने जैसी कोई दंडात्मक कार्रवाई तब तक न करें जब तक उनके पहचान पत्रों के सत्यापन पर आदेश नहीं आ जाता।
इस परिवार के सदस्य कश्मीर के निवासी हैं और उनका बेटा बेंगलुरु में काम करता है। पहलगाम में आतंकवादी हमले के मद्देनजर उन्हें पाकिस्तान भेजा जा सकता है, पहलगाम में हुए हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की बैंच ने कहा कि ये मामला मानवीय पहलू से जुड़ा है। उसने परिवार को ये छूट दी कि दस्तावेज सत्यापन के आदेश से असंतुष्ट होने पर वह जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।
न्यायालय ने अहमद तारिक बट और उनके परिवार के पांच अन्य सदस्यों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। परिवार ने दावा किया है कि उनके पास वैध भारतीय दस्तावेज होने के बावजूद उन्हें हिरासत में लिया गया और पाकिस्तान भेजने के लिए वाघा बॉर्डर पर ले जाया गया।
बैंच ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद केंद्र ने 25 अप्रैल की अधिसूचना में आदेश में उल्लेखित लोगों को छोड़कर शेष पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा रद्द कर दिया है और उन्हें वापस भेजने के लिए एक विशिष्ट समयसीमा भी दी है।
एडवोकेट क्रांति कुमार ने कहा कि “परिवार के चार सदस्य जम्मू-कश्मीर पुलिस की हिरासत में थे। उन्हें निर्वासन के लिए सीमा पर ले जाया गया। उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए। यह पहली राहत थी। सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी। चूंकि उनके पास नागरिकता साबित करने के लिए सभी दस्तावेज हैं, इसलिए उन्हें गृह मंत्रालय के समक्ष इसे साबित करने का अवसर दिया जाना चाहिए। यह दूसरी राहत थी। आज के आदेश का प्रभाव यह है कि सबसे पहले उन्हें अभी निर्वासित नहीं किया जाएगा। पहले जांच होगी और फिर निर्णय लिया जाएगा।”