New Delhi: केंद्रीय बजट 2024-25 में ऑनलाइन प्लेटफार्मों के जरिये निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 10 से 15 ई-कॉमर्स एक्सपोर्ट हब या ईसीईएच बनाने का प्रस्ताव है। इन ई-कॉमर्स एक्सपोर्ट हब का मकसद अमेजन, ईबे, वॉलमार्ट जैसे प्लेटफॉर्म से ई-कॉमर्स निर्यात की परेशानियां कम करना है।
सरकार हब से जुड़े नियामक को अंतिम रूप देने के लिए हितधारकों के साथ बातचीत कर रही है। इंडिया एसएमई फोरम, फर्स्ट इंडिया और प्रेसिडेंट ट्रस्टी विनोद कुमार का कहना है कि “सरकार ने ई-कॉमर्स निर्यात पर ध्यान देने का फैसला किया है। ये बेहद महत्वपूर्ण है, इस दिशा में सरकार का पहला कदम ई-कॉमर्स एक्सपोर्ट हब बनाना है। ये ग्रामीण और अंदरूनी इलाकों के सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों के लिए बेहद उपयोगी होगा।”
अभी घरेलू ई-कॉमर्स निर्यातकों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, विदेश से भुगतान में देरी की वजह से ई-कॉमर्स निर्यातकों के भारी-भरकम शिपिंग बिल लंबित हैं। उनके लिए बैंक 200 से 2500 रुपये प्रति शिपमेंट तक जुर्माना वसूलते हैं।
निर्यातकों को बिल से मिलने वाली रकम के मिलान की परेशानी भी झेलनी पड़ती है, बिल रकम में शिपिंग और पैकिंग शुल्क भी शामिल होते हैं और निर्यातकों को कम भुगतान होता है। उत्पाद वापस करने पर भी ई-कॉमर्स निर्यातकों को निर्यात शुल्क देना पड़ता है, जो बड़ा बोझ है।
यह हब ई-कॉमर्स निर्यात के लिए टर्नअराउंड समय भी कम करेंगे और ई-कॉमर्स रिटर्न या रिजेक्ट की हालत में आसान आयात की सुविधा देंगे। फिलहाल ई-कॉमर्स के जरिये भारत से सालाना निर्यात करीब पांच अरब अमेरिकी डॉलर, जबकि चीनी से करीब 300 अरब अमेरिकी डॉलर है, इंडस्ट्री के कुछ अनुमानों के मुताबिक भारत अगले दो-तीन सालों में ई-कॉमर्स निर्यात की क्षमता 50 से 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा सकता है।