New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने चार-एक के बहुमत से फैसला सुनाते हुए असम में अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने संबंधी नागरिकता अधिनियम की धारा ‘6A’की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने इस पर फैसला सुनाया। बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, फैसला पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सहित चार जजों ने सहमति जताई है। वहीं जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई।
दरअसल सिटीजनशिप एक्ट की धारा ‘छह ए’ को 1985 में असम समझौते के दौरान जोड़ा गया था। इस कानून के तहत जो बांग्लादेशी अप्रवासी एक जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम आए हैं वो भारतीय नागरिक के तौर पर खुद को रजिस्टर करा सकते है। हालांकि 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी भारतीय नागरिकता के लायक नहीं हैं।
इस कानून पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हम धारा ‘छह ए’ की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। हम किसी को अपने पड़ोसी चुनने की अनुमति नहीं दे सकते और ये उनके भाईचारे के सिद्धांत के खिलाफ है। हमारा सिद्धांत है जियो और जीने दो।
याचिका करने वाले वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि “इस कानून का मकसद असम समझौते को मान्यता देना था जो विरोध और प्रवासन के बाद हुआ था। अदालत ने आज ‘छह ए’ प्रावधान को बरकरार रखा है जो वास्तव में समझौते का पालन करने वाला कानून बनाता है। 1966 की कट ऑफ डेट होगी। कोई भी व्यक्ति जो 1966 से पहले भारत में आया और सामान्य तौर पर निवासी है, वो नागरिक होगा। कोई व्यक्ति जो 1966 और 1971 के बीच आया, वो 10 वर्षों के बाद नागरिक बन जाएगा। 1971 के बाद आए लोग नागरिक नहीं होंगे। तो यही वो समझौता था जो मोटे तौर पर था और जिसे कानून में मान्यता दी गई थी और उस कानून को बरकरार रखा जा रहा है।