New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में निचली अदालत में नियमित जमानत याचिका दायर करने के संबंध में ‘‘तथ्यों को छिपाने’’ के लिए झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से नाखुशी जताई, जिसके बाद सोरेन ने प्रवर्तन निदेशालय की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली अपनी याचिका वापस ले ली।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अवकाशकालीन पीठ ने सोरेन के वकील कपिल सिब्बल को याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी। इससे पहले बेंच ने चेतावनी दी कि अगर अदालत मामले के विवरण पर गौर करती है तो ये पूर्व मुख्यमंत्री के लिए ‘‘नुकसानदेह’’ होगा।
बेंच ने सिब्बल से कहा कि आपका आचरण काफी कुछ कहता है। हमें उम्मीद थी कि आपके मुवक्किल सफाई के साथ आएंगे लेकिन आपने अहम तथ्यों को छिपाया। सिब्बल ने यह कहते हुए सोरेन का बचाव करने की कोशिश कि वो हिरासत में हैं और उन्हें अदालतों में दायर की जा रहीं याचिकाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
इस पर बेंच ने कहा कि ‘आपका आचरण दोषरहित नहीं है, कोर्ट ने कहा वो कोई आम आदमी नहीं हैं, वह मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना गिरफ्तारी के खिलाफ उनकी याचिका खारिज करेगा। इसके बाद सिब्बल याचिका वापस लेने पर राजी हो गए जिसकी पीठ ने अनुमति दे दी।
ईडी ने पहले सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 31 जनवरी को सोरेन की गिरफ्तारी को झारखंड हाई कोर्ट ने बरकरार रखा था और निचली अदालत ने 13 मई को उनकी नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी थी। सोरेन ने 13 मई को कथित दिल्ली आबकारी घोटाले से जुड़े धन शोधन के मामले में केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया और अपने लिए भी ऐसी ही राहत देने का अनुरोध किया था।
वकील प्रज्ञा बघेल के जरिए दायर अपील में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेता ने कहा कि हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करने में गलती की थी। सोरेन के खिलाफ जांच रांची में 8.86 एकड़ के भूखंड से जुड़ी है, ईडी ने आरोप लगाया कि सोरेन ने ये प्लॉट गैरकानूनी तरीके से खरीदा। सोरेन अभी रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में न्यायिक हिरासत में हैं।