Delhi AIIMS: दिल्ली एम्स को AIIMS Delhi says for the first time it was faced with cases of injuries caused by carbide guns on Diwali, डॉक्टरों के मुताबिक एम्स के डॉ. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र में इस साल पटाखों से होने वाली आँखों की चोटों में बढ़ोतरी दर्ज की गई।
संस्थान की ओर से बताया गया कि उन्हें आँखों की चोट के 190 मामले मिले, जिनमें से 18-20 कार्बाइड गन के कारण हुए। आरपी नेत्र विज्ञान केंद्र की प्रमुख डॉ. राधिका टंडन ने बताया कि पिछले साल दिवाली के दौरान 160 लोगों ने आंखों में लगी चोट का इलाज इस संस्थान में हुआ।
डॉ. टंडन ने कहा, “कार्बाइड गन से लगभग 18 मामले सामने आए। ये पहली बार है, जब हमारे सामने कार्बाइड गन से चोट लगने के मामले आए हैं। हमने मुख्य रूप से रासायनिक जलन देखी, जहाँ कॉर्निया सफेद हो गया और आँख की सतह क्षतिग्रस्त हो गई। उनमें से कुछ के कॉर्निया पर कणिकाएँ जमी हुई थीं।”
उन्होंने बताया, “कार्बाइड गन में होता यह है कि कार्बाइड का एक पत्थर लिया जाता है, जिसमें पानी डाला जाता है जिससे रासायनिक प्रतिक्रिया होती है और गैस बनती है जिसे फिर जलाया जाता है। जलाते समय कुछ लोगों को लगता है कि कुछ नहीं हो रहा है इसलिए वे अंदर झांकते हैं और जो गैस जमा होती है वो आंख को जला देती है। उनमें से कुछ ने इसे जलाया और एक अनियंत्रित विस्फोट हुआ इसलिए गैस, गर्मी और कणों के साथ मिलकर आंख पर फट गई।”
ये देसी बंदूकें पीवीसी पाइप और कैल्शियम कार्बाइड से बनाई जाती हैं, जो पानी के साथ प्रतिक्रिया करके एसिटिलीन गैस बनाती है और चिंगारी के संपर्क में आने पर फट जाती है। पाइप से निकलने वाले प्लास्टिक के टुकड़े छर्रे की तरह काम करते हैं और गंभीर चोट पहुँचा सकते हैं।
एक अन्य डॉक्टर नम्रता शर्मा ने कहा, “कार्बाइड बंदूक बनाने की विधि सोशल मीडिया पर आसानी से उपलब्ध है। किसान पिछले कई सालों से जानवरों को भगाने के लिए इसका इस्तेमाल करते आ रहे हैं। इस साल, ये बच्चों के हाथों में पटाखा बन गई। ये एक देसी तरीका है और इसे बनाने के लिए किसी भी निर्माण संबंधी दिशानिर्देश का पालन नहीं किया जाता है। सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए थे।”