Chirag paswan: बिहार में एनडीए गठबंधन की सूनामी लाने में एलजेपी (रामविलास) का भी अहम योगदान है, पार्टी ने 29 सीट पर चुनाव लड़ा और 19 सीट पर जीत हासिल की। पार्टी प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने एक बार फिर अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत को आगे बढ़ाया है। खुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
चिराग पासवान ने कहा कि “मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे। ये मेरा पूरा विश्वास है, विपक्ष की करारी हार का कारण उनका अहंकार है और हम लोगों की प्रचंड जीत का कारण डबल इंजन की सरकार पर, जिसका नेतृत्व मेरे प्रधानमंत्री केंद्र में और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी बिहार में कर रहे हैं। इस डबल इंजन की सरकार, जिसका मजबूती से समर्थन बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट की सोच कर रहा है, एनडीए के तमाम घटक दल कर रहे हैं, मुझे लगता है कि हमारे गठबंधन की एकता पर बिहार की जनता का विश्वास और महागठबंधन का अहंकार उनको ले डूबा है और हमारे विश्वास ने हमें जीत दिलाई।”
इस जीत से एनडीए के सभी घटकों का मनोबल बढ़ा है और चिराग भी इससे अछूते नहीं हैं। चिराग पासवान ने कहा कि “मैं बिहार की जनता को, बिहार की महान जनता को विशेष धन्यवाद और बधाई देता हूं कि जिस तरीके से एक ऐतिहासिक फैसला बिहार की जनता ने एनडीए को एक प्रचंड जीत देकर अगले पांच साल बिहार को विकास की राह पर गति देने की सोच के साथ ये फैसला लिया है।”
जब सीट बंटवारे में एलजेपी (रामविलास) को 29 सीटें मिलीं, तो चिराग पासवान ने पीएम मोदी का धन्यवाद किया था। “जीरो विधायक वाली पार्टी को 29 सीटें दे देना, एक सांसद को पांच सीटें, जीरो विधायक को 29 सीटें दे देना लड़ने के लिए, अब अगर इसके बाद भी मेरी कोई नाराजगी होगी, तो शायद मुझसे बड़ा कोई नाशुक्रा नहीं होगा। ऐसे में मेरा विश्वास, जो प्रधानमंत्री के ऊपर है और उनका विश्वास जो मेरे ऊपर है, ये वादा करता हूं कि उसपे खरा उतरूंगा। एनडीए को एक प्रचंड जीत हासिल होगी।”
चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया है कि भरोसा गलत नहीं था। ये बात उनके एक प्रतिद्वंद्वी ने भी स्वीकार की है, चिराग पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान की दूसरी पत्नी रीना शर्मा के बेटे हैं। उनकी एक बहन निशा पासवान हैं। उनके पति अरुण भारती एलजेपी (रामविलास) से जमुई से सांसद हैं। चिराग ने बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी, झांसी के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में सेकेंड सेमेस्टर तक पढ़ाई की। कॉलेज छोड़ने के बाद, उन्होंने 2011 में एक हिंदी फिल्म “मिले ना मिले हम” में अभिनय किया। इसके बाद चिराग ने राजनीति का रूख कर लिया।
चिराग पासवान का राजनीतिक सफर 2014 में शुरू हुआ। उन्होंने पहली बार एलजेपी की टिकट पर जमुई से चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचे। तब चिराग के पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान एलजेपी अध्यक्ष थे। मई 2019 के लोक सभा चुनाव में चिराग ने दोबारा जमुई से जीत हासिल की। उसी साल पांच नवंबर को पिता की मौजूदगी में पार्टी ने चिराग पासवान को अपना अध्यक्ष चुना। अक्टूबर 2020 में रामविलास पासवान का निधन हो गया। पार्टी और परिवार को एकजुट रखने की जिम्मेदारी चिराग के कंधों पर आ गई।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 2019 में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार पर लोकसभा चुनावों के दौरान एलजेपी (रामविलास) के उम्मीदवारों के खिलाफ साजिश करने का आरोप लगाया, इसके बाद 2020 विधानसभा चुनाव से पहले चिराग एनडीए से अलग हो गए। उनकी पार्टी ने सभी 243 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए। 2021 में एलजेपी में आंतरिक कलह शुरू हो गई। नतीजा ये हुआ कि पार्टी का विभाजन हो गया। एक ओर चिराग का गुट था, तो दूसरी ओर चाचा पशुपति पारस का, चुनाव आयोग ने चिराग के गुट को एलजेपी (रामविलास) के रूप में मान्यता दी।
चिराग की अगुवाई वाली पार्टी 2024 लोकसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा बनी। पार्टी ने सौ फीसदी स्ट्राइक रेट के साथ सभी सीटों पर जीत हासिल की। उनके “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” नारा का जनता पर अभूतपूर्व असर पड़ा।
मौजूदा चुनाव में चिराग के कंधे पर पिता की विरासत को संजोने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया है। इस जीत ने ये साबित कर दिया।