Bihar: सुप्रीम कोर्ट में आज बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होनी है, भारत निर्वाचन आयोग ने इस प्रक्रिया को सही ठहराते हुए कहा है कि इसका उद्देश्य “अयोग्य मतदाताओं को हटाकर चुनाव की शुद्धता बनाए रखना” है।
आयोग ने बताया कि 1.5 लाख से अधिक बूथ स्तर एजेंटों को लगाकर सभी पात्र मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश की गई है और सभी प्रमुख राजनीतिक दल इस प्रक्रिया में शामिल थे। ईसी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है कि, “मतदान का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 व 1951 की धाराओं से जुड़ा है। जो नागरिक, आयु और निवास संबंधी शर्तों को पूरा नहीं करता, उसे वोट देने का अधिकार नहीं है।”
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स नाम के एनजीओ ने इस प्रक्रिया को धोखाधड़ी बताया है और कहा है कि यह बिना उचित प्रक्रिया के लाखों लोगों को मतदाता सूची से बाहर कर सकता है, जिससे लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली को नुकसान पहुंचेगा। राज्यसभा सांसद मनोज झा और अन्य याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पहली बार नागरिकों से वोटर बनने के लिए नागरिकता का सबूत मांगा जा रहा है, जो पहले केवल घोषणा के रूप में लिया जाता था।
योगेंद्र यादव ने अपने हलफनामे में कहा कि इस प्रक्रिया में लगभग 40 लाख मतदाता मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं। 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ ने चुनाव आयोग से कहा था कि आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को वैध दस्तावेजों के रूप में स्वीकार किया जाए। साथ ही, आयोग को बिहार में 7 करोड़ से अधिक मतदाताओं को लेकर चल रही प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी थी।
सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई इसलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि इससे यह तय होगा कि क्या बिहार में मतदाता सूची का यह विशेष पुनरीक्षण संवैधानिक और निष्पक्ष है या नागरिक अधिकारों का हनन कर रहा है। अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट की बेंच पर टिकी हैं, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची इस मामले की सुनवाई करेंगे।