सुपरबग एक ऐसा बैक्टीरिया है, जिसपर किसी भी एंटीबायोटिक्स का असर नहीं होता है। यही वजह है कि इसे कई बार एड्स या एचआईवी से भी बड़ा खतरा माना जाता है। दरअसल जब बैक्टीरिया से होने वाले इंफेक्शन के बाद मरीज जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक्स दवाएं लेता है तो इनमें खास तरह की रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। ऐसा होने पर दवाओं का उन पर असर नहीं होता है, तब उन्हें रोकना बेहद मुश्किल हो जाता है। लेकिन अमेरिका की एक वैज्ञानिक पत्नी ने सुपरबग से जूझ रहे पति को बचाने के लिए एक ऐसा वायरस बनाया है। जिसने 3 हफ्ते में ही पति की सेहत सुधारी है।
बनाया बैक्टीरिया खाने वाला वायरस
अमेरिका की महामारी विशेषज्ञ स्टेफनी स्ट्रैथडी के पति टॉम पैटरसन फरवरी 2016 में सुपरबग से पीड़ित थे। तमाम तरह के इलाज के बाद जब डॉक्टर्स ने जब हाथ खड़े कर दिए तब स्टेफनी ने अपने पति को दवाओं के जरिए नहीं बल्कि नेचुरल वायरस खोजकर बचाया। इसके लिए उन्होंने डॉक्टरों की एक टीम बनाई और सुपरबग के बैक्टीरिया को नष्ट करने में इस नेचुरल वायरस का इस्तेमाल किया। इसके लिए हर खराब चीज जैसे सीवेज, दलदल, तालाब, नाव की सड़ी हुई लकड़ी, मैदान और घास के ढेर से वायरस जुटाए।
अमेरिका में FDA से मिली मंजूरी
स्टेफनी ने इन सभी वायरस का कॉकटेल बनाकर अपने पति के शरीर में इंजेक्ट कर दिया। इसके तीन हफ्ते बाद ही टॉम की स्थिति में सुधार होने लगा। टॉम पूरी तरह से ठीक होने लगे। वहीं अमेरिका के फूड एंड ड्रग एसोसिएशन (FDA) ने भी इस कॉकटेल के लिए मंजूरी दे दी और आगामी खतरे को देखते हुए एंटीबायोटिक बनाने में मदद मांगी है। ताकि सुपरबग से जूझ रहे लोगों को बचाया जा सके।
मिडिल ईस्ट में मिलता है सुपरबग
सुपरबग को एंटीबायोटिक-रेजिस्टेंट बैक्टीरिया भी कहते हैं। यह बैक्टीरिया मिडिल ईस्ट की रेत में पाया जाता है। दरअसल इराक युद्ध के दौरान बम की चपेट में आए अधिकांश अमेरिकी सैनिकों के घावों में यह सुपरबग पाया गया था। इसके चलते इस सुपरबग का नाम इराकिबेक्टर रख दिया गया था। अब यह तेजी से फैल रहा है.
2050 तक हर साल 1 करोड़ मौतों का खतरा
दुनिया में सुपरबग से जान गंवाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। इंग्लैंड सरकार की एक कमीशन ने अनुमान लगाया है कि 2050 तक सुपरबग के कारण हर साल 1 करोड़ लोगों की जान जा सकती है। यानी, हर तीन सेकंड में एक व्यक्ति की मौत हो सकती है।
क्यों नहीं असर करता है सुपरबग
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे में यह बात सामने आई थी कि भारत में करीब 53 फीसदी लोग अपनी मर्जी से एंटीबायोटिक खाते हैं। जिसकी वजह से उनका शरीर एंटी बायोटिक्स रेसिस्टेंस हो जाता है। 1970 के आसपास सबसे पहले सुपरबग शब्द का नाम सामने आया था। तब शोधकर्ताओं ने कहा था कि यह सुपरबग पॉल्यूशन ईटिंग बैक्टीरिया के लिए इस्तेमाल होता था। लेकिन हाल के सालों में यह एक बड़ा खतरा बनकर दुनियाभर को अपना शिकार बना रहा है।
बैक्टीरिया से बचने के लिए यह जरूरी टिप्स
सुपरबग के खिलाफ दुनियाभर में वैज्ञानिक हर दिन शोध में जुटे हैं और वह रोज नई सूचनाओं के साथ लोगों को जागरूक कर रहे हैं। अब कुछ बातों को ध्यान में रखकर हम खुद को इस खतरनाक बैक्टीरिया की चपेट में आने से बचा सकते हैं।
• सुपरबग से बचाव का सबसे अच्छा और सस्ता उपाय साफ-सफाई है। इसलिए समय-समय पर हाथ धोते रहें। खासकर खाना खाने, टॉयलेट करने या फिर किसी गंदे गेट आदि को छूने के बाद साबुन से हाथ जरूर धो लें।
• हमेशा पौष्टिक खाना खाएं, भरपूर नींद लें, नियमित व्यायाम करें। इससे आपका इम्यून सिस्टम मजबूत रहेगा। बच्चे का समय पर वैक्सीनेशन करवाएं, जिससे उसका प्रतिरोधी तंत्र बेहतर होगा। यही नहीं इम्यून सिस्टम से आप ऐसे बैक्टीरिया से लड़ने के लिए मजबूत होंगे।
• एंटीबायोटिक ही एक ऐसी दवा है जो बैक्टीरिया के संक्रमण को खत्म करती है, लेकिन अगर आप इसका ज्यादा इस्तेमाल करेंगे तो इसका असर धीरे-धीरे खत्म होने लगेगा।
• सुपरबग आमतौर पर पानी और खाने के माध्यम से अधिक संपर्क में आते हैं। ऐसे में ध्यान रखें कि यदि आप ऐसे शहर या देश जा रहे हैं जहां इसका खतरा है तो इसकी सावधानी ही समझदारी है।
• भारत जैसे विकासशील देशों में तो सुपरबग का खतरा अधिक है। यहां अस्पताल में भी संक्रमण बहुते तेजी से फैलता है और इसका खतरा भी अधिक होता है।
ध्यान रखें:
हमेशा डॉक्टरी सलाह के बाद ही एंटीबायोटिक लें। किसी भी दवा का कोर्स हमेशा पूरा करें। उसे बीच में बंद न करें। डॉक्टर्स के पुराने पर्चे के हिसाब से दवा लेकर खुद इलाज न करें। डॉक्टर्स बीमारी के हिसाब से सही एंटीबायोटिक लेने की सलाह दें। जब मरीज को बहुत ज्यादा जरूरत हो तभी एंटीबायोटिक लिखें। इंफेक्शन को रोकने का हरसंभव प्रयास करें।