Dev Deepawali: भगवान भोले की नगरी काशी देव दीपावली के लिए सज रही है। वाराणसी में देव दीपावली मनाई जाएगी, कहा जाता है कि इस दिन सभी देवी देवता काशी में आकर इस देव दीपावली के उत्सव में शामिल होते हैं।
वाराणसी के हर घाट पर घंटियों और मंत्रों की ध्वनि के साथ-साथ असंख्य दीयों की जगमगाहट दिखेगी और इस मनमोहक दृश्य को देखने के लिए काशी के हजारों लोग और पर्यटक उमड़ेंगे।
कन्हैया दुबे, स्थानीय “काशी अपने आप में अद्भुत है, यहां की देवदीपावली की जो छटा होती है उसे देखने के लिए दूर प्रांतों से ही नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं। इस समय स्थिति ये हो गई है कि लोग पांच पांच हजार रुपये नाव पर बैठने का दे दे रहे हैं और तमाम होटल बूक हैं, गाड़ी बुक हैं और घाट पर कदम रखने का जगह नहीं मिलता और तमाम प्रशासन का ऐसा सहयोग है बैरिकेडिंग लगी हैं यहां पर, और आरती को देखने के लिए लोग आते हैं हम तो यही हम कह सकते हैं कि हमने नहीं गंगा मैया ने बुलाया है।”
पुराणों के अनुसार, इस दिन देवता गंगा स्नान के लिये पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। यह पर्व भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर पर विजय की स्मृति में मनाया जाता है, इसलिये इसे त्रिपुरोत्सव भी कहा जाता है, जिस दिन त्रिपुरासुर का वध हुआ उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी।
दिनेश दुबे, सचिव, गंगोत्री सेवा समिति “देव दीपावली तो प्राचीन काल से एक बहुत बड़ी परंपरा है जो भगवान शंकर के द्वारा त्रिपुरासुर राक्षस के वध के उपलक्ष्य में काशी में मनाई जाती है। जिसकी साक्ष्य है कि गंगा घाट महारानी अहिल्याबाई के द्वारा हजारों दीपक से होता था। तदोपरांत सभी घाटों पर दीपदान होता था।”
सभी घाटों पर शाम पांच बजे से दीप प्रज्वलन के साथ उत्सव की शुरुआत होगी, इसके बाद प्रमुख गंगा घाटों पर महा आरती’ की जाएगी। आयोजकों का कहना है कि वे दशकों से इस परंपरा का हिस्सा रहे हैं, जिसमें 21 ब्राह्मण महाआरती करेंगे और 42 कन्याएं रिद्धि सिद्धि के रूप में यहां पर उपस्थित रहेंगी।
इस दौरान हजारों मिट्टी के दीयों के साथ-साथ आतिशबाजी और लेजर शो भी होंगे। भारत की प्राचीन नगरी वाराणसी में संस्कृति और आधुनिकता का मिलन दिखाई देगा, और दुनिया देखेगी कि एक देश अपनी विरासत को कैसे जीवित रखता है।