Uttarakhand: नदियों में बढ़ते अतिक्रमण और निर्माण से देहरादून में अगली आपदा का खतरा

Uttarakhand: उत्तराखंड में देहरादून के सहस्त्रधारा में हाल ही में आई बाढ़ और बादल फटने के बाद हुई तबाही की तस्वीरें अब भी दिख रही हैं। टूटी हुई इमारतें और ढही हुई संरचनाएं कुदरत के प्रकोप की गवाही दे रही हैं। बड़े पैमाने पर हुई तबाही के एक महीने बाद कई इलाकों में निर्माण कार्य दोबारा शुरू हो गया है। इसने उत्तराखंड में आपदाओं को लेकर लोगों की चिंताओं को बढ़ा दिया है।

उत्तराखंड में बीते कुछ सालों के दौरान प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता और उनसे होने वाला नुकसान लगातार बढ़ता जा रहा है। इस साल अब तक आपदाओं में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। पहाड़ी राज्य में इन आपदाओं की कई वजहें गिनाई जा रही हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन और प्रशासनिक लापरवाही भी शामिल हैं। हालांकि यहां रहने वाले लोगों के मुताबिक बार-बार तबाही होने की बड़ी वजह नदियों पर अंधाधुंध कब्जा और अवैज्ञानिक निर्माण कार्य है।

पर्यावरणविदों ने ऐसे निर्माणों की मंजूरी पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि ये बाढ़ क्षेत्रीकरण कानूनों और नदी तटों और पहाड़ी इलाकों में निर्माण पर कानूनी प्रतिबंधों का उल्लंघन है। वहीं स्थानीय पत्रकारों का मानना है कि वोट बैंक की राजनीति ने भी आपदाओं को बदतर बनाने में अहम भूमिका निभाई है।

उनके मुताबिक इलाके के नेताओं ने अपने फायदे के लिए बस्तियों को नदियों के बिल्कुल किनारे बसा दिया जिससे प्राकृतिक जल निकासी व्यवस्था बाधित हुई। अब यही निर्माण हर मानसून सीजन में आपदाओं को न्योता दे रहे हैं। आपदा के बाद नदी के किनारे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले कई लोगों का कहना है कि उन्हें जमीन खाली करने के लिए कहा जा रहा है जिसके बाद उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे जाएं तो जाएं कहां।

हालांकि, कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के नेता इस बात पर सहमत दिखते हैं कि नदी के किनारे निर्माण कार्य खतरनाक है और इससे आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है। कांग्रेस का आरोप है कि मौजूद सरकार नदी के किनारे हो रहे निर्माणों पर रोक लगाने में नाकाम रही है। वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी का मानना है कि नदी घाटियों में निर्माण से जिंदगी को सीधा खतरा है और भविष्य में आपदाओं को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत है।

वहीं अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने बाढ़ क्षेत्र के निर्धारण का काम पूरा कर लिया है और बाढ़ संभावित क्षेत्रों में निर्माण कार्य के लिए दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए हैं। उनके मुताबिक इसका मकसद भविष्य में आपदाओं के जोखिम को कम करना है।

भले ही फ्लडप्लेन जोनिंग दिशा-निर्देश लागू कर दिए गए हों लेकिन उन्हें अमल में लाना बड़ी चुनौती बनी हुई है। हर गुजरते साल के साथ कुदरत बड़ी तबाही के साथ चेतावनी दे रही है। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या अगली आपदा आने से पहले कार्रवाई की जाएगी?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *