Shardiya Navratri: नवरात्रि के पांचवें दिन होती है मां स्कंदमाता की पूजा

Shardiya Navratri:  नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है। वैदिक पंचांग के अनुसार 26 सितंबर को शारदीय नवरात्र का पांचवा दिन है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्कंदमाता की पूजा करने से जीवन के सभी मुश्किलों का अंत होता है। शारदीय नवरात्र का पर्व बहुत ज्यादा शुभ माना जाता है। यह समय देवी दुर्गा की पूजा और गहन भक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान माता रानी की खास पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसके साथ ही मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

मां स्कंदमाता का स्वरूप और महत्व
मां स्कंदमाता को सिंह पर सवार और चार भुजाओं वाली देवी के रूप में वर्णित किया गया है। उनके विग्रह में बालरूप भगवान कार्तिकेय गोद में विराजमान रहते हैं। एक हाथ से वे वरद मुद्रा में आशीर्वाद देती हैं, जबकि अन्य दो हाथों में कमल धारण करती हैं। देवी का रंग शुभ्र है और वे कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं, इस कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है।

आध्यात्मिक महत्व
नवरात्रि की पंचमी को साधक का मन ‘विशुद्ध चक्र’में स्थित हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन साधक की लौकिक व सांसारिक चित्तवृत्तियां शांत हो जाती हैं और वह परम चैतन्य की ओर अग्रसर होता है। मां स्कंदमाता की आराधना से साधक का मन देवी स्वरूप में पूर्णत: तल्लीन होकर आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करता है।

पूजा विधि
पंचमी के दिन मां के श्रृंगार में सुंदर रंगों का प्रयोग करना चाहिए। विनम्रता के साथ देवी स्कंदमाता और बाल कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए। कुमकुम, अक्षत, पुष्प, फल और चंदन से पूजन करें तथा घी का दीपक जलाएं। इस दिन मां दुर्गा को केले का भोग अर्पित करने का विशेष महत्व है। भोग का प्रसाद ब्राह्मण को दान करने से बुद्धि का विकास होता है और साधक जीवन में प्रगति प्राप्त करता है।

मां स्कंदमाता के मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

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