Delhi: दिल्ली के मालवीय नगर इलाके के पशु अधिकार कार्यकर्ता मंगलवार को राजधानी में आवारा कुत्तों को आश्रय गृहों में स्थानांतरित करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरोध में सड़कों पर उतर आए।
प्रदर्शनकारियों ने ‘कुत्ता नहीं तो वोट नहीं’ जैसे नारे पोस्टरों पर लिखे हुए थे। इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले पर फिर से विचार करने की अपील की।
आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेजने के फैसले को इन लोगों ने अन्यायपूर्ण बताया और कहा कि प्रभावी नसबंदी और टीकाकरण से कुत्तों के काटने से जुड़ी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
गौरी दयाल, पशु अधिकार कार्यकर्ता ” बीते 10 दिन से सड़कों पर सारा देश बेजुबानों के लिए लड़ रहा है। हम चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर बेजुबानों के फैसलों में आए। हम क्यों इस मुद्दों को इतना राजनैतिक बना रहे हैं। उनकी आवाज कौन बोलेगा। जो भी मुद्दा है, उसे बैठकर सुलझाया जा सकता है। नसबंदी है, टीकाकरण है। एमसीडी को अपनी शक्तियां बढ़ानी होंगी ताकि ये दिक्कतें आगे न आएं। हम इतने दिनों से सड़कों पर दिन रात लगे हुए हैं। हमारी सरकार हमारी क्यों नहीं सुन रही।
मुकेश कुमार, पशु अधिकार कार्यकर्ता अगर स्ट्रीट डॉग नहीं है तो हमारी धरती नहीं है। इंसान किसके लिए चैन की नींद लेता है रात में क्योंकि डॉग भोंकते हैं। चोर पकड़ लेते हैं, क्रिमिनल पकड़ लेते हैं, डकैत पकड़ लेते हैं। अगर डॉग हटाए जाएंगे तो इंसान के ऊपर बहुत बड़ी बला आने वाली है।))
सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने 11 अगस्त को दिल्ली एनसीआर में आवारा कुत्तों के काटने से रेबीज़ फैलने के एक स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई करते हुए कई निर्देश जारी किए थे।
आदेश में दिल्ली-एनसीआर से आवारा कुत्तों को हटाकर उन्हें स्थायी रूप से आश्रय स्थलों में रखने का निर्देश दिया था। इस फैसले का देश भर के पशु प्रेमियों ने विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा की मांग हो रही है।
पिछले हफ़्ते इस मामले पर सुनवाई के लिए गठित सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि स्थानीय अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है।
पीठ ने यह भी कहा कि गैर-सरकारी संगठनों को “शोर मचाने” से कहीं ज्यादा कुछ करने की ज़रूरत है, जैसे कि पशु जन्म नियंत्रण नियमों के कार्यान्वयन पर ज़ोर देना। अदालत ने कहा कि हस्तक्षेप याचिका दायर करने वाले सभी लोगों को ज़िम्मेदारी लेनी होगी। तीन जजों की पीठ ने दो-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले पर रोक लगाने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।