Krishna Janmashtami: नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की….देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी की धूम

Krishna Janmashtami: नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की….आज देशभर में बड़े ही धूमधाम के साथ कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। देशभर के मंदिरों को सजाया जा रहा है और घरों में कान्हा के जन्म लेने की तैयारियां की जा रही है। जन्माष्टमी पूजन के लिए आज मुहूर्त रात 12 बजकर 4 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।

कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व-

आज 16 अगस्त को देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है,  हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। द्वापर में श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही दिशाएं स्वच्छ व प्रसन्न और समस्त पृथ्वी मंगलमय हो गई थी। विष्णु के अवतार श्री कृष्ण के प्रकट होते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फ़ैल गया।

क्यों लगाया जाता है छप्पन भोग- 

कथा-1
प्रचलित कथा के अनुसार, मान्यता है कि माता यशोदा अपने बाल गोपाल को रोज आठ प्रहर मतलब दिन में 8 बार भोजन कराती थीं लेकिन जब श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पूजा के कराए जाने पर देवराज इंद्र बृजवासियों से नाराज हो गए थे तो उन्होंने क्रोध में खूब वर्षा बरसाई थी ताकि बृजवासी माफी मांगने पर मजबूर हो जाए लेकिन बृज वासियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया और सभी बृज वासियों को इसी पर्वत के नीचे आने को कहा।

कथा है कि श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक बिना खाए-पिए गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा। जब इंद्र को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने खुद क्षमा मांगी। सातवें दिन जब बारिश रूकी तो उनकी मां यशोदा ने बृजवासियों संग मिलकर उन्होंने 7 दिनों के 8 पहर के हिसाब से कान्हा के लिए छप्पन भोग बनाए थे। तभी से श्रीकृष्ण की पूजा में उन्हें छप्पन व्यंजनों का महाभोग लगाने की परंपरा है।

कथा-2
एक अन्य मान्यता के अनुसार,  एक बार गोकुल की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए एक माह तक लगातार यमुना नदी में स्नान किया और माता कात्यायनी की पूजा की ताकि श्री कृष्ण ही उन्हें पति रूप में मिले। जब ये बात श्रीकृष्ण को पता चली तो श्री कृष्ण ने सभी गोपियों को उनकी इच्छापूर्ति होने का आश्वासन दिया। इसी से खुश होकर गोपियों ने श्री कृष्ण के लिए अलग-अलग छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाए।

जन्माष्टमी पूजन विधि-

  • जन्माष्ठमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके व्रत का संकल्प लें।
  • नार्थ-ईस्ट में भगवान कृष्ण को लगाया जाए तो आप अपने जीवन में धर्मयुद्ध में खड़े हैं,कर्मक्षेत्र में खड़े हैं तो वहां आपकी जीत सुनश्चित है और आपकी जितनी भी परेशानियां हैं उन्हें कान्हा दूर कर देते हैं।
  • माता देवकी और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें।
  • पूजन में देवकी,वासुदेव,बलदेव,नन्द, यशोदा आदि देवताओं के नाम जपें।
  • रात्रि में 12 बजे के बाद श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं।
  • जन्माष्टमी पर कान्हा को पीले चंदन या फिर केसर का तिलक जरूर लगाएं, साथ ही साथ उन्हें मोर के मुकुट और बांसुरी जरूर अर्पित करें।
  • लड्डूगोपाल को पंचामृत से अभिषेक कराकर भगवान को नए वस्त्र अर्पित करें एवं झूला झुलाएं।
  • तुलसी डालकर माखन-मिश्री व धनिये की पंजीरी का भोग लगाएं।
  • आरती करके प्रसाद को वितरित करें।

कृष्ण जन्म से जुडी पौराणिक कथा-

द्वापर युग की बात है, मथुरा पर राजा अग्रसेन का बेटा कंस शासन करता था। कंस बड़ा निर्दयी और अत्याचारी था। उसने अपने ही पिता को हटाकर स्वयं राजगद्दी हथिया ली थी। उसकी एक बहन थी, देवकी, जिनका विवाह यदुवंशी वासुदेव से हुआ। एक बार कंस, अपनी बहन देवकी को ससुराल छोड़ने जा रहा था। तभी आकाश से आवाज़ गूँजी- “हे कंस! तेरी मृत्यु का कारण देवकी ही बनेगी। उसका आठवां पुत्र तेरा वध करेगा।”

यह सुनते ही कंस क्रोधित होकर वासुदेव को मारने को दौड़ा। लेकिन देवकी ने उसे समझाया कि पति को मारने से कोई लाभ नहीं, बल्कि वे वचन देती हैं कि हर संतान को स्वयं उसके हवाले कर देंगी। कंस मान गया, लेकिन उसने दोनों को मथुरा के कारागार में कैद कर दिया। वहाँ देवकी के छह शिशुओं को कंस ने जन्म लेते ही मार डाला। सातवाँ गर्भ योगमाया की लीला से रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित हो गया, जिससे बलराम का जन्म हुआ। अब आठवें पुत्र की प्रतीक्षा थी और कंस भयभीत था।

उसी समय वृंदावन में नंद बाबा की पत्नी यशोदा भी गर्भवती थीं। जब समय आया, देवकी ने एक दिव्य शिशु को जन्म दिया। उससे पहले भगवान विष्णु ने प्रकट होकर वासुदेव को आदेश दिया “इस बालक को तुरंत गोकुल पहुँचा दो और वहाँ जन्मी कन्या को वापस लेकर आना।” जन्म के समय ही कारागार के द्वार अपने आप खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए। वासुदेव ने नवजात कृष्ण को टोकरी में रखा और यमुना पार कर नंद बाबा के घर पहुँचे। वहाँ उन्होंने शिशु कृष्ण को यशोदा के पास सुला दिया और उनकी नवजात कन्या को लेकर कारागार लौट आए।

सुबह होते ही कंस को समाचार मिला। वह कारागार पहुँचा और कन्या को मारने के लिए उसे ज़मीन पर पटक दिया। लेकिन वह कन्या अचानक आकाश में प्रकट हो गई और बोली- “अरे मूर्ख कंस! मुझे मारकर तू क्या पाएगा? तेरा संहारक तो गोकुल पहुँच चुका है। वही तुझे तेरे पापों का फल देगा।” इतना कहकर वह कन्या अंतर्धान हो गई। यही मायामयी योगिनी थीं।

और इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ मथुरा की कारागार में, लेकिन उनका बचपन गोकुल-वृंदावन में बीता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *