Uttrakhand: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बादल फटने से अचानक बाढ़ आ गई, इससे धराली के ऊंचाई वाले गांवों में तबाही मच गई। पानी के तेज प्रवाह में बह गए लोगों की तलाश जारी है।
बादल फटने का मतलब बहुत कम समय में एक सीमित इलाके में भारी बारिश होने से है, इससे विनाशकारी नतीजे सामने आते हैं। मौसम विज्ञानी गुरफान उल्लाह बेग ने कहा कि “बादल फटना आमतौर पर तब कहा जाता है जब 10 से 15 किलोमीटर के क्षेत्र में एक घंटे या उससे कम समय में 10 सेंटीमीटर बारिश हो। ऐसा केवल पहाड़ी इलाके में ही नहीं, बल्कि मुंबई जैसे किसी और इलाके में भी हो, तो इसे बादल फटना कहते हैं। यानी आप जानते हैं, जमीन की इतनी क्षमता नहीं होती कि वो इतना पानी सोख सके और फिर पानी निकलने का समय ही न मिले और इसीलिए बाढ़ आती रहती है।”
बादल फटने से अक्सर अचानक बाढ़ और भूस्खलन होता है, जिससे बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचता है। गरज, बिजली, तेज हवाएं और ओलावृष्टि निवासियों और वन्यजीवों, दोनों के लिए खतरा बढ़ा देती हैं, यह घटनाएं आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में पर्वतीय उठान के कारण होती हैं।
मौसम विज्ञानी और वैज्ञानिक गुरफान उल्लाह बेग ने बताया कि “पर्वतीय उत्थान कुछ और नहीं, बल्कि जब नमी ज्यादा होती है, गर्म हवा, जो पहाड़ की तलहटी से आ रही होती है और जब नमी के संपर्क में आती है, तो ये अचानक और बहुत तेज बारिश का रूप ले लेती है। यही कारण है कि इसकी आवृत्ति बढ़ रही है और अगर जलवायु परिवर्तन हुआ, तो इसके बढ़ने की आशंका है और अगर हम इस समय इसे नहीं रोक पाए, तो ये हो भी रहा है।”
विशेषज्ञ हिमालय और दूसरे पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की बढ़ती घटनाओं को वैश्विक जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं।
ऐसे हालात में लोगों को सलाह दी जाती है कि वे मौसम संबंधी सलाह का बारीकी से पालन करें और ऐसी घटनाओं में ज्यादा नुकसान से बचने के लिए ऊंची जगहों पर चले जाएं।